देश में धार्मिक स्थलों पर दावे को लेकर कोई नया मुकदमा अभी निचली अदालतें नहीं सुनेगी। यही नहीं,अभी कई मस्जिद- दरगाह पर दावे को लेकर जो विभिन्न केस अलग अलग अदालतों में लंबित भी है, उनमें भी कोई प्रभावी आदेश अदालतें नहीं देंगी। धार्मिक स्थलों के सर्वे जैसा ऐसा आदेश भी निचली अदालतें नहीं देगी जिससे दूसरे पक्ष का हित प्रभावित होता हो।
सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पास किया है।कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि जब तक प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है, तब तक इस तरह के मामलों को सुन कर निचली अदालत का कोई आदेश पास करना ठीक नहीं रहेगा।
कोर्ट के आदेश का क्या असर होगा
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब ये है कि धार्मिक स्थलो पर दावे को लेकर चल रही अदालती लड़ाईयों पर एक तरह से विराम रहेगा। इस आदेश का असर अभी लंबित 18 मुकदमों पर पड़ेगा। ये 18 मुकदमे 10 अलग अलग मस्जिद/ दरगाह पर दावे को लेकर विभिन्न हिंदू संगठनों की ओर से दाखिल किए गए है। इनमे संभल की जामा मस्जिद, बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद,राजस्थान की अजमेर दरगाह शामिल है। मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के हवाला देते हुए इन सभी मुकदमों का विरोध किया है।
केंद्र सरकार से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने कहा है। हालांकि इस मामले में कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था लेकिन अभी तक सरकार ने जवाब नहीं दाखिल किया है।कोर्ट ने कहा कि हमारे लिए इस केस पर फैसला लेने के लिए ज़रूरी है कि सरकार अपना रुख साफ करें। कोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का वक़्त देते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वो भी सरकार के हलफनामे पर अगले चार हफ़्तो में जवाब दाखिल कर दें।
कोर्ट के सामने सवाल क्या है
*1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का कहता है कि देश में धार्मिक स्थलों में वही स्थिति बनाई रखी जाए जो आजादी के दिन15 अगस्त 1947 को थी। उसमे बदलाव नहीं किया जा सकता।आज इस एक्ट को लेकर 6 याचिकाए सुप्रीम कोर्ट में लगी थी। इनमे से विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय , करूणेश शुक्ला, अनिल त्रिपाठी ने इस एक्ट को चुनौती दी है।वही ज़मीयत उलेमा ए हिंद की याचिका इस एक्ट के समर्थन में है।
कोर्ट में दोनों पक्षों की दलील
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे। न्याय पाने के लिए कोर्ट आने के अधिकार से वंचित करता मौलिक अधिकार का हनन है।
वही ज़मीयत उलेमा ए हिंद ने इस कानून के समर्थन में याचिका दाखिल की है। जमीयत का कहना है कि इस एक्ट को प्रभावी तौर पर अमल में लाया जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले में दिए फैसले में भी साफ पर चुका है कि ये एक्ट बाकी जगह पर लागू हो लेकिन अगर कोर्ट इसको चुनौती देनी वाली याचिकाओं पर अब सुनवाई करता है तो ये मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा करेगा।ये देश के सेकुलर ढांचे के खिलाफ होगा ।
एक्ट के समर्थन में दूसरी याचिकाएं
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी मथुरा, बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी, आरजेडी नेता मनोज झा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रकाश करात, भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर जूलियो रिबेरो ने भी प्लेसस ऑफ वर्शिप एक्टके समर्थन में अपनी अर्जी दाखिल की है। इन्होंने भी पेंडिंग केस में पक्षकार बनाये जाने की मांग की है। ये भी चाहते है कि कोर्ट इस केस में उनका भी पक्ष सुने। इनको पक्षकार बनाकर इनका पक्ष सुना जाएगा या नहीं, ये कोर्ट आगे तय करेगा।