फतेहपुर। तहसील खागा क्षेत्र के उमरा (भोगलपुर) गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कथा वाचक डॉक्टर आचार्य संतोषदास जी महाराज ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया। कथावाचक ने कहा कि धनवान व्यक्ति वही है जो अपने तन, मन, धन से सेवा भक्ति करे, वही आज के समय में धनवान व्यक्ति है क्योंकि परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम के द्वारा ही संभव हो सकती है। इसके आगे पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि पूतना राक्षसी ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया। माता यशोदा जब भगवान श्री कृष्ण को पूतना के वक्षस्थल से उठाकर लाती है उसके बाद पंचगव्य गाय के गोब, गोमूत्र से भगवान को स्नान कराती है। सभी को गौ माता की सेवा, गायत्री का जाप और गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। गाय की सेवा से 33 करोड़ देवी देवताओं की सेवा हो जाती है। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखे हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरण रज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–मां तेरे लाला ने माटी खाई है, यशोदा माता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं और कहा अच्छा खोल मुख। माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप, समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दिखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमें जम्बूद्वीप है उसमें भारतवर्ष है और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्री कृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को। श्री कृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया है। श्री कृष्ण ने सोचा यदि मैया को यह ज्ञान बना रहता है तो हो चुकी बाललीला, फिर तो वह मेरी नारायण के रूप में पूजा करेगी न तो अपनी गोद में बैठायेगी, न दूध पिलायेगी और न मारेगी। जिस उद्देश्य के लिए मैं बालक बना वह तो पूरा होगा ही नहीं। इस दौरान कथा यजमान महंत गणेशदास जी महाराज एवं अन्य श्रद्धालुओं द्वारा व्यास पीठ की आरती किया एवं प्रसाद वितरण करवाया। इस अवसर पर कथाव्यास ने पूतना का पूरा ब्यौरा परिचय के साथ बताया एवं उसका वास्तव उद्देश्य भी बताया साथ ही नारी सम्मान एवं नारित्व के स्थान का उल्लेख किया जिस पर प्रांगण में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से सम्मान दिया इतना ही नहीं भक्तिभाव के माहौल में नंदबाबा की खुशी पर लोगों ने संगीतमय कथा के दौरान भक्ति भाव में नृत्य प्रस्तुत किया और पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान होता रहा।