(*भक्ति एवं सुविचार परक दोहे*)
महाकाल के लाल हैं, सुत गिरिसुता महान।
प्रथम पुज्य हैं देव में, श्री गड़ेश भगवान।1।
ईश वन्दना करन से, बात सुने भगवान।
तूं ईश्वर की सुन रहा, अगर लगाया ध्यान।2।
पानी छानो वस्त्र से, बानी छान विवेक।
इहि से बनते स्वास्थ्य रवि,उहि से साथ अनेक।3।
आंगन सून अतिथि बिना,जल बिन सरिता सून।
जेब सून रवि निधि बिना, भोज्य सून बिन नून।4।
प्रात चाय गुरु राय को, नियमित लेव जरूर।
इहि से रहती फूर्ति रवि, उहि से मिटे गुरूर।5।
मान भले नहि मिल सके, चाहत रक्खो भाव।
कर मत प्रेम दिमाग से, दिल से रखो लगाव।6।
अहंकार करता वही, बिनु श्रम सब कुछ पाय।
जो श्रम से हासिल करे,सबके मन को भाय।7।
खुद में खोज खराबियां, पर अच्छाई खोज।
खुशी मिलेगी खूद तुम्हें, मित्र मिलेंगे रोज।8।
हिय से यदि सम्बन्ध हो, दिल से रहे लगाव।
मन कबहूं भरता नहीं, बढ़ता रहता भाव।9।
जीवन के पिच में मनुज, खेल लगाकर ध्यान।
जो सबसे नजदीक है, वह ही बालर मान।10।
(रविनन्दन सैनी *रवि* गोपालगंज, बिहार)
*(निवेदन पूर्वक आग्रह करता हूँ कि त्रुटियों से हमें अवश्य अवगत करें मित्रों,हमे खुशी होगी)*