फतेहपुर। रमजान हर किसी को नेकी की तरफ बुलाता है। इतना ही नहीं रमजान के रोजे हर बालिग पर फर्ज हैं। चाहे वह महिला हो या पुरूष। रमजान के रोजे शरई मजबूरी के बिना छोड़ने पर गुनाह होता है। रमजान का पाक महीना शुरू होते ही जहां बड़ों में उत्सुकता देखी जाती है। वहीं बच्चे भी किसी से कम नहीं है। शहर के अलग-अलग स्थानों पर कई बच्चों ने पहला रोजा रखकर अल्लाह की इबादत की। बच्चों के हौसलों की मुहल्लेवासियों समेत रिश्तेदारी में चर्चा रही और सभी ने बच्चों को तरह-तरह के उपहार देकर हौसला अफजाई की।

रमजान माह का मकसद है कि रोजा रखकर जहां बुराईयों से बचा जा सके वहीं अल्लाह के करीब पहुंचा जा सके। रमजान के रोजे हर बालिग पर फर्ज किये गये हैं। मसलन वह बीमार न हो और रोजा रखने की हालत में न हो। सात वर्षीय आयरा फैसल, ग्यारह वर्षीय बरीरा रिजवी, ग्यारह वर्षीय अजीम उद्दीन पुत्र मेराज उद्दीन महताब, दस वर्षीय हुजैफा फैसल, दस वर्षीय मो. ताहा यासीन, छह वर्षीय मो. जिया आलम पुत्र डा. मुहम्मद इरफान आलम ने अपने परिवार के सदस्यों को रोजा रखते हुए देखकर मन में भी रोजा रखकर अल्लाह की इबादत का ख्याल आया। सभी ने मां-बाप की इजाजत से अपना पहला रोजा रखा। भीषण गर्मी और शिद्दत के दिनों में रखे गये इस रोजे की अहमियत ही कुछ और है। अल्लाह तआला को जहां गर्मी का रोजा अधिक पसंद हैं वहीं जवानी की इबादत बेहद प्यारी है। सभी बच्चों ने रोजा रखकर पूरा दिन अल्लाह की इबादत की। बच्चों के इस हौसले को देखकर मुहल्ले के साथ-साथ रिश्तेदारों ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। सभी बच्चों ने बताया कि उनकी मां व अन्य घर वाले भी रोजा रखते हैं। उनको देखकर ही उसके मन में भी रोजा रखने की नियत आयी। बताया कि रोजा रखने से सवाब मिलता है और गरीबों की भूख-प्यास का भी एहसास होता है।

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