करछना- प्रयागराज। प्रयाग राज मे एक एस सी व्यक्ति को जिंदा जलाने की क्रूरता ने उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आम लोगो का कहना है कि प्रशासन का अस्तित्व खत्म हो चुका है, पुलिस का डर नहीं रहा, और आजादी के 76 साल बाद भी घृणित मानसिकता के कारण सरेआम हत्याएं और अत्याचार हो रहे हैं।

प्रयागराज के करछना थाना क्षेत्र के असौता गांव में हाल ही में देवी शंकर नामक एक दलित व्यक्ति की निर्मम हत्या की गई। इस घटना ने न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया, बल्कि पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था और सामाजिक समरसता पर सवाल उठाए हैं
मृतक के पिता की शिकायत के अनुसार, दिलीप सिंह और अन्य आरोपियों ने देवी शंकर को गेहूं धोने के लिए अपने घर बुलाया। इसके बाद वह लापता हो गया, और अगली सुबह उसका अधजला शव एक बगीचे में मिला। आरोप है कि पुरानी रंजिश के चलते उसकी हत्या की गई और सबूत मिटाने के लिए शव को जलाया गया।

पुलिस ने सात लोगों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जिसमें हत्या, साक्ष्य नष्ट करने, और संभवतः SC/ST एक्ट की धाराएं शामिल हैं। छह संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है, और जांच जारी है।

सोशल मीडिया और कुछ खबरों के अनुसार, यह हत्या जातिगत आधार पर हुई, जहां ठाकुर समुदाय के लोगों ने कथित तौर पर दलित व्यक्ति को गेहूं का बोझ न ढोने के कारण जिंदा जलाया। हालांकि, पुलिस ने अभी तक इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
घटना के बाद जनता के आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। मंगलवार, 15 अप्रैल 2025 को आरोपियों के अवैध कब्जे पर बुलडोजर चलाया गया, जो सरकार की सख्ती का संकेत देता है।

कुछ लोगो का दावा है कि उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और पुलिस का डर खत्म हो गया है।

उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक ढांचा मौजूद है, जिसमें पुलिस आयुक्त प्रणाली, जिला प्रशासन, और अन्य विभाग शामिल हैं। प्रयागराज में पुलिस आयुक्त और वरिष्ठ अधिकारी सक्रिय हैं। सरकार ने संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे एनकाउंटर और गैंगस्टर एक्ट।
उत्तर प्रदेश की विशाल जनसंख्या (24 करोड़ से अधिक) के लिए पुलिस बल (लगभग 2 लाख) अपर्याप्त है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी और त्वरित कार्रवाई में चुनौतियां आती हैं। करछना जैसी घटनाएं दर्शाती हैं कि पुलिस अक्सर अपराध रोकने में असफल रहती है।

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस घटना को “जंगलराज” और “सामंती मानसिकता” का परिणाम बताया है। यह धारणा है कि पुलिस प्रभावशाली लोगों के सामने कमजोर पड़ती है, जो अपराधियों को बेखौफ बनाता है।

करछना मामले में पुलिस ने तुरंत FIR दर्ज की और आरोपियों को हिरासत में लिया। बुलडोजर कार्रवाई भी प्रशासन की सक्रियता दिखाती है। फिर भी, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति प्रशासन की निवारक क्षमता पर सवाल उठाती है।

करछना की घटना घृणित मानसिकता और सामाजिक हिंसा को उजागर करती है,
अगर यह हत्या जातिगत आधार पर हुई, तो यह दर्शाता है कि आजादी के 76 साल बाद भी समाज में जातिवाद और सामंती सोच गहरी जड़ें जमाए हुए है। सोशल मीडिया पर इसे “पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समाज के खिलाफ हिंसा” के रूप में देखा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में सामाजिक और आर्थिक असमानता कमजोर वर्गों को हिंसा का आसान शिकार बनाती है। दलित और पिछड़े समुदाय अक्सर ऐसी घटनाओं का शिकार होते हैं।

अगर पुलिस को पुरानी रंजिश की जानकारी थी, तो इसे रोकने के लिए पहले कदम क्यों नहीं उठाए गए? यह सवाल प्रशासन की खुफिया और निगरानी प्रणाली पर उठता है।
हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में जातिगत और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़ी हैं, जैसे बहराइच में हिंसा। ये घटनाएं सामाजिक एकता को कमजोर करती हैं।आजादी के 76 साल बाद भी ऐसी घटनाएं शर्मनाक हैं।
शिक्षा और जागरूकता की कमी, सामंती मानसिकता, और सामाजिक असमानता ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देती हैं। करछना की घटना, अगर जातिगत है, तो यह समाज में अभी भी मौजूद गहरे विभाजन को दर्शाती है।
पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया अक्सर घटना के बाद होती है, न कि पहले। निवारक उपायों की कमी और भ्रष्टाचार की शिकायतें जनता के विश्वास को कम करती हैं।
लंबित मुकदमों और धीमी न्यायिक प्रक्रिया के कारण दोषियों को सजा में देरी होती है, जो अपराधियों को प्रोत्साहित करता है।

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