अम्बेडकर को पढ़े बिना भारतीय समाज की जटिलताओं को पूरी तरह समझना मुश्किल
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956) भारत के महान समाज सुधारक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता थे। वे दलित समुदाय से आए और छुआछूत, जातिवाद जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया।
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का बचपन अत्यंत संघर्षपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि वे उस समय के समाज में व्याप्त गहरी जातिगत भेदभाव और छुआछूत का शिकार थे। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक महार (दलित) परिवार में हुआ था, जो उस समय “अछूत” माने जाते थे।
स्कूल में उन्हें अन्य बच्चों से अलग, बाहर या जमीन पर बैठाया जाता था। शिक्षक अक्सर उन्हें नजरअंदाज करते थे।
उन्हें कक्षा में रखे पानी के घड़े को छूने की इजाजत नहीं थी। अगर कोई चपरासी उपलब्ध न होता, तो वे प्यासे ही रहते थे।
उनकी बुद्धिमत्ता और जिज्ञासा के बावजूद, उन्हें लगातार अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ता था।
सार्वजनिक स्थानों, जैसे मंदिरों, कुओं, या गाँव के रास्तों में, उन्हें “अछूत” होने के कारण प्रवेश से वंचित किया जाता था।
एक बार, जब वे बैलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे, तो गाड़ीवान को उनकी जाति का पता चलने पर उन्हें उतार दिया गया।
उनके परिवार को भी सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता था, जिससे रोजमर्रा की जिंदगी और मुश्किल हो जाती थी।
उनके पिता, रामजी मालोजी सकपाल, जो ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे, ने शिक्षा को बहुत महत्व दिया। उन्होंने भीमराव को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया और संसाधनों की कमी के बावजूद उनकी शिक्षा पर ध्यान दिया।
यह समर्थन उनके जीवन का आधार बना, जिसने उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी।इन तमाम अपमानों और कठिनाइयों के बावजूद, भीमराव में असाधारण लगन और आत्मविश्वास था। वे किताबों में डूबे रहते थे और हर अवसर का उपयोग अपनी बुद्धिमत्ता को निखारने में करते थे।
इन अनुभवों ने उनके मन में सामाजिक सुधार और समानता की भावना को और मजबूत किया
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अत्यंत कठिन परिस्थितियों में प्राप्त की।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सतारा (महाराष्ट्र) में शुरू की। उनके पिता, रामजी मालोजी सकपाल, जो ब्रिटिश सेना मेंथे, अपने परिवार को सतारा में बसाया था।
उस समय दलित बच्चों के लिए स्कूल में पढ़ाई करना आसान नहीं था। भीमराव को “अछूत” होने के कारण कक्षा के बाहर या अलग बैठाया जाता था। शिक्षक और सहपाठी अक्सर उनसे दूरी बनाए रखते थे।
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर की शैक्षिक उपलब्धियाँ असाधारण थीं। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से 1915 में अर्थशास्त्र में एम.ए. और 1917 में पीएच.डी. प्राप्त की, जहाँ उनकी थीसिस थी *”नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया: ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी”। इसके बाद, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से 1923 में अर्थशास्त्र में डी.एससी. (डॉक्टर ऑफ साइंस) की उपाधि हासिल की, और उनकी थीसिस थी “द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन”। साथ ही, उन्होंने लंदन के ग्रे’स इन से बैरिस्टर-एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की।
ये उपलब्धियाँ उस समय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण थीं, क्योंकि एक दलित पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के लिए विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करना लगभग असंभव था। उनकी शिक्षा ने उन्हें सामाजिक सुधार, संविधान निर्माण, और आर्थिक नीतियों में योगदान देने की मजबूत नींव दी।
बाबासाहेब अम्बेडकर की शैक्षिक उपलब्धियाँ वाकई प्रेरणादायक हैं। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से 1915 में अर्थशास्त्र में एम.ए. और 1917 में पीएच.डी. पूरी की, जहाँ उनकी थीसिस का विषय था “नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया: ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी”। इसके बाद, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की और 1923 में अर्थशास्त्र में डी.एससी. (डॉक्टर ऑफ साइंस) की उपाधि हासिल की। साथ ही, उन्होंने लंदन के ग्रे’स इन से बैरिस्टर-एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की।
इन उपलब्धियों का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि उस समय एक दलित परिवार से आने वाले व्यक्ति के लिए विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करना असाधारण था। उनकी शिक्षा ने उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए मजबूत आधार दिया।
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए कई ऐतिहासिक आंदोलन चलाए, जिनमें महाड़ सत्याग्रह और मंदिर प्रवेश आंदोलन प्रमुख हैं। साथ ही, 1956 में उनके बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय सामाजिक असमानता के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम था।
सन् (1927)मे
यह आंदोलन महाराष्ट्र के महाड़ में चवदार तालाब से पानी लेने के अधिकार के लिए शुरू किया गया था। उस समय दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी लेने की अनुमति नहीं थी।
20 मार्च 1927 को, अम्बेडकर ने हजारों दलितों के साथ तालाब तक मार्च किया और पानी पिया, जो सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त संदेश था।
इस सत्याग्रह ने दलितों में आत्मविश्वास जगाया और सामाजिक समानता की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया।
उसके बाद डा.बाबा
साहब भीम राव अम्बेडकर ने दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन चलाए। सबसे उल्लेखनीय था काला राम मंदिर सत्याग्रह (1930, नासिक), जहाँ दलितों ने मंदिर में प्रवेश की माँग की।
ये आंदोलन धार्मिक स्थानों में समानता और गरिमा के अधिकार के लिए थे, जो उस समय अभूतपूर्व थे।
इन प्रयासों ने सामाजिक जागरूकता बढ़ाई, हालाँकि कई बार हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा।
14 अक्टूबर 1956 को, नागपुर में अम्बेडकर ने हिंदू धर्म में व्याप्त जातिगत असमानता और छुआछूत के खिलाफ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसे धम्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएँ लीं, जिनमें बुद्ध की शिक्षाओं (समानता, करुणा, अहिंसा) को अपनाने और हिंदू रूढ़ियों को त्यागने का संकल्प शामिल था।
इस दिन, लगभग 5 लाख अनुयायियों ने उनके साथ बौद्ध धर्म अपनाया, जो सामाजिक परिवर्तन का एक अभूतपूर्व कदम था। इससे दलित समुदाय को एक नई पहचान और आत्मसम्मान मिला।
इन आंदोलनों ने दलितों और वंचितों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा की और भारतीय समाज में समानता की नींव रखी।
बौद्ध धर्म अपनाने से न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति हुई, जिसने लाखों लोगों को प्रेरित किया।
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने सर्व समाज की महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने न केवल दलित महिलाओं, बल्कि सभी वर्गों की महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, और कानूनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।
अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 15 (जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध) को शामिल करवाया, जो महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करते हैं।अनुच्छेद 16 ने सरकारी नौकरियों में लिंग के आधार पर भेदभाव को रोका, जिससे महिलाओं को समान अवसर मिले।
उन्होंने संविधान सभा में जोर दिया कि समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत लागू हो, जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण था।संविधान में सभी वयस्कों (पुरुष और महिला) को वोट का अधिकार दिया गया, जो उस समय कई देशों में महिलाओं को नहीं मिला था। यह महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का आधार बना।बाबा साहबअम्बेडकर ने हिंदू कोड बिल (1950-51) को संसद में पेश किया, जिसका उद्देश्य हिंदू महिलाओं को सामाजिक और कानूनी अधिकार देना था।महिलाओं को तलाक का अधिकार, एकपत्नीत्व को अनिवार्य करना, और सहमति से विवाह की स्वतंत्रता।बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा, जो उस समय क्रांतिकारी था।रूढ़िवादी ताकतों के विरोध के कारण यह बिल पूरी तरह पारित नहीं हुआ, और अम्बेडकर ने इसके विरोध में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। हालाँकि, बाद में इसके हिस्सों को हिंदू मैरिज एक्ट (1955), हिंदू सक्सेशन एक्ट (1956) आदि के रूप में लागू किया गया, जो महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित हुए।
इस बिल ने न केवल हिंदू, बल्कि अन्य समुदायों की महिलाओं के लिए भी सुधारों का रास्ता खोला।
अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर दिया। उन्होंने श्रम सुधारों की वकालत की, जैसे मातृत्व अवकाश, काम के घंटों का नियमन, और कारखानों में महिलाओं के लिए बेहतर स्थिति।
संविधान में निर्देशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 39) के तहत समान काम के लिए समान वेतन और आर्थिक न्याय की बात शामिल की गई, जो महिलाओं के लिए भी लागू थी।
डॉ. अम्बेडकर ने सर्व समाज की महिलाओं के लिए कानूनी, सामाजिक, और आर्थिक समानता की नींव रखी। हिंदू कोड बिल, संवैधानिक प्रावधान, और उनकी शिक्षाएँ महिलाओं को सशक्त बनाने का एक मजबूत आधार बनीं। विशेष रूप से दलित और वंचित महिलाओं के लिए, उन्होंने न केवल अधिकार दिलाए, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान और संघर्ष की प्रेरणा भी दी।
डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर, जिन्हें भारत रत्न और विश्व स्तर पर सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है, भारत के संविधान निर्माण, दलितों, वंचितों और महिलाओं के उत्थान, और समानता की स्थापना के लिए ऐतिहासिक योगदान दिया। फिर भी, यह दुखद है कि कुछ लोग उनकी विरासत के प्रति घृणा, अपमान, या हिंसक व्यवहार जैसे मूर्तियों को तोड़ने का कार्य करते हैं।
उनके कार्य सर्व समाज के लिए थे, न कि किसी एक समुदाय के लिए। फिर भी, कुछ लोग उनके योगदान को गलत समझते हैं या संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं।कुछ लोग अम्बेडकर के कार्यों को पूरी तरह समझे बिना, उनके खिलाफ प्रचार या भ्रांतियों का शिकार हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग उनके बौद्ध धर्म अपनाने को हिंदू धर्म के खिलाफ मानते हैं, जबकि यह सामाजिक असमानता के खिलाफ कदम था।अम्बेडकर की मूर्तियों को तोड़ना या उनके खिलाफ अपशब्द बोलना न केवल उनके प्रति अपमान है, बल्कि यह संविधान और समानता के सिद्धांतों का भी अपमान है।मूर्तियों को खंडित करना कानूनन अपराध है और यह सामाजिक शांति को भंग करता है। यह उन लाखों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है जो अम्बेडकर को प्रेरणा मानते हैं।
अम्बेडकर ने अपने जीवन में कभी घृणा को बढ़ावा नहीं दिया; उन्होंने सभी के लिए प्रेम, करुणा, और समानता की बात की। उनके खिलाफ घृणा फैलाना उनकी शिक्षाओं के विपरीत है।
अम्बेडकर विश्व स्तर पर भारत की पहचान हैं। उनके खिलाफ अपमानजनक व्यवहार देश की छवि को भी प्रभावित करता है।