दुबौलिया-बस्ती- उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक गंभीर आरोप लगाया गया है, जिसमें दुबौलिया पुलिस थाने पर आदर्श नामक युवक की पिटाई करने का आरोप है। आदर्श को चोरी के एक मामले में पूछताछ के लिए पुलिस थाने लाया गया था। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने आदर्श को थाने में बंद कर पीटा, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। थाने से वापस घर आने के बाद आदर्श को दो से तीन बार खून की उल्टी हुई थी और उसकी हालत नाजुक होने पर परिजन उसे अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां उसकी मृत्यु हो गई।
जबकि भारतीये सम्विधान मे बर्णित है किअगर पुलिस कार्यवाही से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो पुलिस पर कार्यवाही की जा सकती है। इस मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 174 के तहत कार्यवाही की जा सकती है
यदि पुलिस पूछताछ के लिए किसी व्यक्ति को थाने लाती है और पूछताछ के दौरान उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो यह एक गंभीर मामला है और भारत में इसके लिए कानूनी प्रक्रिया और कार्यवाही भी निर्धारित किया गया है।: यदि पूछताछ के दौरान मृत्यु होती है , तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 176 के तहत इसकी मजिस्ट्रेट जांच अनिवार्य है।जांच उपरांत के बाद में जब स्पष्ट पता चलता है कि पुलिस की ओर से हिंसा, प्रताड़ना या लापरवाही हुई, तो संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ IPC की धारा 302 (हत्या), धारा 304 (उपहत्या), या धारा 330 (पूछताछ के दौरान चोट पहुंचाना) जैसी धाराओं के तहत FIR दर्ज करने का भारतीये सम्विधान मे बर्णित है। और
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत, यदि यह साबित हो जाता है कि पुलिस ने जानबूझकर हिंसा की, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हुई, तो हत्या का मामला किया जाना आवश्यक है ,जिसमे भारतीये सम्विधान के न्याय संहिता के अनुसार उम्रकैद या मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस प्रशासन मृतक आदर्श के मामले में निष्पक्ष जांच करवाती है या नहीं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जांच पारदर्शी और निष्पक्ष हो, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। जबकि जांच अधिकारी से निष्पक्ष तरीके से जांच करने और शिकायत की वास्तविकता का पता लगाने की अपेक्षा की जाती है । यदि पुलिस प्रशासन निष्पक्ष जांच नहीं करवाती है, तो यह एक गंभीर मुद्दा होगा जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।