15 दिनों तक पितरों की आत्मशांति के लिए होंगे कार्यक्रम
फतेहपुर
पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि के लिए पितृपक्ष शुरू हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर धरती लोक पर आते हैं। इसलिए इस दौरान जो भी काम हम करते हैं वह उनकी आत्मा को शांति पहुंचाता है। इस बार पितृपक्ष का आरंभ कब से हो रहा है 17 या 18 सितंबर इसे लेकर लोगों में दुविधा है। हालांकि आचार्यों के मुताबिक पितृ पक्ष आज यानि 17 सितम्बर से शुरू होंगे एवं 18 से पिंडदान किए जा सकेंगे। आचार्य भृगुनंदन शुक्ला ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार तो पितृ पक्ष का आरंभ 17 सितंबर से होने जा रहा है लेकिन इस दिन श्राद्ध नहीं किया जाएगा। दरअसल इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा का श्राद्ध है और पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के कार्य प्रतिपदा तिथि से होते हैं। इसलिए 17 सितंबर को ऋषियों के नाम से तर्पण किया जाएगा। श्राद्ध पक्ष का आरंभ प्रतिपदा तिथि से होता है। ऐसे में 18 सितंबर से पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, तर्पण, दान आदि कार्य आरंभ हो जाएगा। पितृ पक्ष का आरंभ देखा जाए तो 18 सितंबर से हो रहा है और 2 अक्टूबर तक यह चलेगा। आचार्य ने बताया भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि पर 18 सितंबर से बुध आदित्य व शश योग की साक्षी में महालय श्राद्ध का आरंभ होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष 16 की बजाय 15 दिन का रहेगा। पंचांग की गणना के अनुसार प्रतिपदा तिथि का क्षय होने से यह स्थिति बन रही है। श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि का विशेष महत्व है।
कल से महालय श्राद्ध की शुरूआत
आचार्य ने बताया कि 18 सितंबर से महालय श्राद्ध की विधिवत शुरुआत होगी। पूर्णिमा का श्राद्ध 17 सितंबर को सुबह 11.44 बजे के बाद किया जा सकेगा जब कि प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को सुबह 8.04 बजे के बाद किया जाएगा। ग्रहों में बुध आदित्य योग और शनि का शश योग विद्यमान रहेगा। इस योग में श्राद्ध का आरंभ अच्छा माना जाता है।
कैसे करें पितृपक्ष पितरों का श्राद्ध
श्राद्ध के संबंध में आचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में दक्षिण की ओर मुख करके पितरों का ध्यान करते हुए उनका तर्पण करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद पंच ग्रास अर्थात गाय, कुत्ता, कौआ, कीट व पतंगा के भाग को निकाल कर व ब्राम्हण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में तर्पण, ब्रह्मभोज व दान करने से पित्र ऋण से मुक्ति मिलती है। पिता के जीवित रहते यदि माता की मृत्यु हो जाए तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। जिनकी अकाल मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। उन्होंने बताया पितृ पक्ष में वृद्ध आश्रम में अन्न दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में सुबह और शाम के समय देवी देवताओं की पूजा की जाती है और पितरों की पूजा के लिए दोपहर का समय होता है। पितरों की पूजा के लिए सबसे उत्तम समय 11.30 बजे से लगभग 12.30 बजे तक का समय सबसे उत्तम होता है।
किस दिन है कौन सा श्राद्ध
17 सितंबर मंगलवार पूर्णिमा का श्राद्ध (ऋषियों के नाम से तर्पण), 18 सितंबर बुधवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ), 19 सितंबर गुरुवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध, 20 सितंबर शुक्रवार तृतीया तिथि का श्राद्ध, 21 सितंबर शनिवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध, 22 सितंबर शनिवार पंचमी तिथि का श्राद्ध, 23 सितंबर सोमवार षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध, 24 सितंबर मंगलवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध, 25 सितंबर बुधवार नवमी तिथि का श्राद्ध, 26 सितंबर गुरुवार दशमी तिथि का श्राद्ध, 27 सितंबर शुक्रवार एकादशी तिथि का श्राद्ध, 29 सितंबर रविवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध, 30 सितंबर सोमवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध, 1 अक्टूबर मंगलवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध और 2 अक्टूबर बुधवार सर्व पितृ अमावस्या होगी।