यह बड़ा ही विचित्र देश है। इस देश में सांस्कृतिक विविधता तो है ही ठगी, लूट ,बेईमानी और अंधभक्ति की गाथा भी कम नहीं है। थोड़ा सा दिमाग लगाइये और किसी व्यक्ति ,संस्थान की करीने से जांच कर दीजिये तो वह नंगा नजर आने लगता है। लेकिन बेहयाई राजनीति और लूट पर टिके कॉर्पोरेट तंत्र के सामने जनता की क्या विसात ?

किसी भी शताब्दी का कोई वर्ग इतना बेहया नहीं होगा, जितना हमारा राजनीति ,उच्च और मध्यम वर्ग है। यही वह वर्ग है, जो बाजार के निशाने पर है और बाजार के लिए एक कमोडिटी भी है और खिलाड़ी भी है। अजीब से अर्द्धनग्न कपड़े पहनकर इठलाती औरत में जितना औरताना सौंदर्य या अस्मिता है, उतनी ही मर्दानगी उस पुरुष में भी है, जो सूट, ब्लेजर पहने ब्रीफकेस लेकर चमचमाते जूते पहने, कार में जाता दिखता है।

दिल्ली और देश के बड़े शहरों में बैग उठाए व्यस्त सफल दिखता पुरुष अपने बुद्धिबल और बाहुबल के दम पर कुछ नहीं रचता! दरअसल, वह दलाल है, लाइजनर है, उसकी समृद्धि और सफलता उतनी ही व्यक्तित्वहीन, सौंदर्यहीन है जितनी हमारे देश की तकनीकी और वैज्ञानिक तरक्की के किस्से। एक दलाल सभ्यता के ‘लार’ टपकाऊ विज्ञापनों की दुनिया के आधार पर इतिहास नहीं रचा जाएगा, लेकिन यह शायद हमारी सभ्यता के सबसे प्रामाणिक साक्ष्य हैं। खुशकिस्मती है कि इन्हें साक्ष्य की तरह देखा जाएगा, तब शर्म से डूब मरने के लिए हम नहीं होंगे।

लेकिन यह सब तो आज के कथित सभ्य और अमीर लोगों की कहानी भर है। लेकिन इन लोगों की अमीरी कहां से और कैसे आती है अगर इसकी पड़ताल कर दी जाय तो न जाने देश के भीतर की कितनी सरकार सवालों के घेरे में में आ जाएगी और फिर केंद्र सरकार की इज्जत कितनी बचेगी ,कहना मुश्किल है। मौजूदा समय में अमीरी की पूरी पटकथा राजनीति से ही शुरू होती है और राजनीति पर जाकर ही ख़त्म भी।

अगर सरकार और सरकार के लोग आपके साथ है तो सबकुछ मुमकिन है। आप देश को भी बेच सकते हैं और सरकार को भी उंगली पर नचा सकते हैं। और सबसे बड़ा सच तो यही है कि आज की सरकार दलालों ,लाइजनरों और कॉर्पोरेट के इशारे पर वह सब करती दिख रही है जो शायद कभी सोचा भी नहीं गया था। इसी खेल का एक हिस्सा है चुनावी बांड। वही बॉन्ड जिसके जरिये पिछले कुछ सालों में बीजेपी की अमीरी बढ़ी और बदले में देश के कई कॉर्पोरेट घराने की तिजोरी में बेतहाशा धन पहुंच गया। धन भी इतना जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

देश की जनता को वही पांच किलो मुफ्त अनाज की भीख नसीब हुई जिसे पाकर आज भी जनता फूले नहीं समा रही है। जनता गदगद है। बीजेपी को भले ही इस लोकसभा चुनाव में शर्मसार करने वाली जीत हासिल हुई है लेकिन बीजेपी को अभी भी इस बात का गुमान है कि उसके दिन फिर से बहुरेंगे क्योंकि उसके पास काफी संपत्ति है। वह पैसों के दम पर कुछ भी कर सकती है। राजनीति को उलट-पलट सकती है और जनता के बीच कोई भी माहौल खड़ा कर सकती है। अपने इकबाल को फिर स्थापित कर सकती है।

लेकिन यह सब सिक्के का एक पहलू है। राजनीति भले ही चिरंतन हो लेकिन सबकी राजनीति हमेशा एक जैसी नहीं चलती। जब राजनीति में सेंध लगती है और राजनीति के पोल खुलते हैं तब धन धरे के धरे रह जाते हैं। कभी के चाणक्य कहे जाने वाले कोई भी आदमी एकदम बौना दिखने लगता है। फिर उसकी कलई जो खुल गई होती है।

चुनावी बॉन्ड की कहानी एक बार फिर से जनता के बीच पहुंचने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले और राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले को लेकर अब सुनवाई होने जा रही है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से इस मुद्दे को रखा गया है और सुप्रीम कोर्ट ने जिस गम्भीरता के साथ इस मुद्दे पर 22 जुलाई को सुनवाई करने जा रही है ,अगर अदालत ने इस पर जांच बैठा दी तो सरकार की नाक तो कट ही जाएगी, उन अमीर लोगों और कॉर्पोरेट का क्या होगा इसकी कल्पना ही की जा सकती है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने और मोदी की सरकार तीसरी बार बनने के बाद जिस तरह से कॉर्पोरेट घराने का मिजाज अचानक कांग्रेस और राहुल गांधी की तरफ मुड़ा है, साफ़ बताता है कि अमीरों पर कोई तेज तलवार लटकने वाली है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड से हुए हर लेन -देन और भ्रष्टाचार और रिश्वत के ममले को लेकर एक खास जांच दल बनाने को लेकर शीर्ष अदालत में याचिका पहुंच गई है। शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने साफ़ शब्दों में कहा है कि इसकी जांच की जा सकती ही और इस मामले की सुनवाई 22 जुलाई को की जाएगी। यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लेटिगेशन की तरफ से डाली गई है जिसकी अगुवाई प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ,नेहा राठी और चेरिल डिसूजा कर रहे हैं।

वैसे तो याचिका में कई बातें कही गई हैं। कई तरह के मामलों का भी उल्लेख किया गया है। देश की तमाम जांच एजेंसियों पर भी सवाल उठाये गए हैं और यह भी कहा गया है कि सरकार के संरक्षण में चल रही जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार में सहायक हैं और बीजेपी को लाभ पहुंचाने के लिए काम करते रहे हैं। जिन जांच एजेंसियों की चर्चा की गई है उनमें सीबीआई ,ईडी और आयकर विभाग की चर्चा की गई है। याचिका के मुताबिक इन्हीं एजेंसियों के जरिये जांच के दायरे में आने वाली कई कंपनियों ने सत्तारूढ़ दलों को बड़ी मात्रा में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया है। जाहिर है चंदा देकर जांच के परिणामों को प्रभावित किया गया है।

याचिका में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की भी चर्चा की गई है और कहा गया है कि राजनीतिक दलों को जो चंदे दिए गए है वह किसी एवज में दिए गए हैं। ऐसे में इस बात की जरूरत है कि इस खेल की गहन जांच की जाए ताकि सरकार और पार्टी के लोगों के साथ ही कॉर्पोरेट की कहानी सामने आ सके और जांच एजेंसियों की भूमिका से भी जनता परिचित हो सके।

याचिका में इस बात की भी चर्चा की गई है कि कैसे हजारों करोड़ का चंदा देकर लाखों करोड़ का काम लिया गया है। कैसे इस देश में घटिया दवाएं बेचने वाली कंपनियां करोडों का चंदा देती है और नकली दवा बेचकर वही कंपनी लाखों लोगों के जान के साथ खेल रही है।

याचिका आगे कहता है कि चुनावी बॉन्ड को हालांकि शीर्ष अदालत ने गैर क़ानूनी तो घोषित कर दिया लेकिन चंदे के बदले किसे क्या मिला इसे जानना ज्यादा जरुरी है। चुंकि चुनावी बॉन्ड देश का ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है और दुनिया के लोग भी इस खेल को जानकार आश्चर्य में पड़े हुए हैं। बता दें कि 15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार दिया था। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि यह योजना राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग का खुलासा करने में विफल रहने के कारण संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करती है।

जानकारी के मुताबिक, 1260 कंपनियों और व्यक्तियों ने 12,769 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे। शीर्ष 20 कंपनियों ने 5,945 करोड़ रुपये का चंदा दिया था, जो चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान की गई कुल राशि का लगभग आधा हिस्सा था।

डेटा के अनुसार, बीजेपी ने 12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 के बीच कुल 6,060.5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भुनाए, जबकि मार्च 2018 से पार्टी द्वारा भुनाई गई कुल राशि 8,251.8 करोड़ रुपये रही। रिपोर्ट के मुताबिक, एमईआईएल ने बीजेपी को सबसे ज्यादा चंदा दिया। कंपनी ने साल 2019 से 2023 के बीच अपनी कुल बॉन्ड खरीद 966 करोड़ रुपये में से 519 करोड़ रुपये का चंदा बीजेपी को दिया था। कंपनी के पास टीवी9 नेटवर्क में भी एक बड़ी हिस्सेदारी है।

इस याचिका पर बहुत से लोगों की नजर है। देश की बड़ी आबादी भी इस यचिका पर सुप्रीम कोर्ट के रवैये पर नजर गड़ाए बैठी है। लोगों को आशा है कि देश का शीर्ष अदालत कोई बड़ा फैसला लेगा और ऐसे लोगों को नंगा करेगा जो देश को सरकार के साथ मिलकर दीमक की तरह चाट रहे हैं। हालांकि यह भी उतना ही सत्य है कि चंदा लेने वाली पार्टियों में कोई बीजेपी अकेली पार्टी नहीं है। चंदा तो कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने भी लिए हैं। लेकिन चुंकि यह योजना बीजेपी की थी और फिर सबसे ज्यादा चंदा देश के धन-धारियों ने बीजेपी को ही दी है और उसका लाभ भी लिया है। ऐसे में अब देश को यह जानकारी तो मिलनी ही चाहिए कि चंदा के बदले धन-धारियों ने देश को कितना चूना लगाया। कितना कमाया।

22 जुलाई को क्या कुछ सुनवाई होता है इस पर सबकी निगाहें टिकी है। इधर देश के अमीरों के बीच खलबली मची है। कई दरवाजे पर सेठ कहे जाने वाले अमीर माथा टेकते नजर आ रहे हैं। रात के अंधेरे में मिलने -मिलाने का दौर खूब चल रहा है। इस खेल में बड़े -बड़े दलाल भी जुटे हुए हैं। याद रखिये इस निशाचर संस्कृति में ही सारे धंधे होते हैं और धंधे को अंजाम तक पहुंचाने में राजनीति की बड़ी भूमिका है।

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