इसके बाद ज्वाइंट मजिस्ट्रेटी भिटौरा के अंतर्गत कानपुर जिले के 4 थाने कोड़ा, अमौली, खजुहा और बिंदकी तथा इलाहाबाद जिले के 6 थाने फतेहपुर, गाजीपुर, हंसवा, एकडला, हथगाम और कड़ा को शामिल किया गया।
इतिहास

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जिले के नाम की उत्पत्ति

जिले का नाम मुख्यालय फतेहपुर के नाम रखा गया है। स्थानीय परंपरा के अनुसार यह नाम जौनपुर के इब्राहीम शाह द्वारा अथगढिया के राजा सीतानन्द पर जीती गयी लड़ाई से लिया गया है। यह विश्वास पूरी तरह से परंपरा पर आधारित है और विजेता का नाम कभी-कभी बंगाल के शासक जलालुद्दीन के रूप में लिया जाता है। नाम की एक और व्युत्पत्ति फतेहमंद खान से लगायी जाती है, जिन्होने शहर की स्थापना की थी। यह तहसील खागा में डेण्डासई में पाये गये एक खण्डित शिलालेख से आधारित है। जिसके लिये सुल्तान अलाउद्दीन के एक अधिकारी फतेहमंद खान ने 1519 ई0 में उनसे एक आदेश प्राप्त किया था। हालांकि यहाॅ एक कठिनाई इस तथ्य के कारण है कि 1519 ई0 में अलाउद्दीन नाम का कोई राजा नही था और तारीख सही होने पर सुल्तान का शीर्षक गलत होना। पुनः डेण्डासई फतेहपुर से लगभग 48 किमी0 से कम नही है। यह फतेहपुर शहर के संस्थापक के नाम के साथ वहाॅ पाये गये अभिलेख को जोड़ने के लिये बहुत दूर प्रतीत होता है।

स्थान, सीमायें, क्षेत्र एवं जनसंख्या

प्रयागराज (इलाहाबाद) मण्डल मे शामिल यह जिला गंगा -यमुना दोआब के पूर्वी या निचले हिस्से में स्थित है और अक्षांश 25°26′ N एवं 26°16′ N और देशान्तर 80°14′ E एवं 81°20′ E के बीच स्थित है। यह उत्तर -पश्चिम मेे कानपुर नगर और दक्षिण-पूर्व में जिला इलाहाबाद/प्रयागराज से घिरा है। गंगा के पार उत्तर में उन्नाव,रायबरेली जिले और थोड़ी दूर तक प्रतापगढ़ जिला पड़ता है। जबकि दक्षिण मेे यमुना नदी इसे बांदा और हमीरपुर जिलो से अलग करती है। आकार में यह लगभग आयताकार है।
जनगणना 2011 के अनुसार जिले का क्षेत्रफल 406499 वर्ग किमी0 है और 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 2632733 है जिसमे 1248011 महिलायें एवं 1384722 पुरूष हैं।

प्रशासनिक इकाई के रूप में जिले का इतिहास

परंपरा के अनुसार जिले का एक बड़ा हिस्सा अर्गल के राजाओं के कब्जे में था और कन्नौज साम्राज्य का हिस्सा था। प्रारम्भिक मुस्लिम काल के दौरान इसे कोड़ा प्रान्त में शामिल किया गया था और 15वीं शताब्दी में जौनपुर के अल्पकालिक राज्य का हिस्सा बना था। अकबर के तहत जिले का पश्चिमी आधा हिस्सा के सरकार का हिस्सा था, जबकि पूर्वी आधा कड़ा में शामिल था। दिल्ली राजवंश की क्रमिक गिरावट के दौरान फतेहपुर को अवध के राज्यपाल को सौंपा गया था लेकिन 1736 ई0 में यह मराठों के अधीन हो गया जिन्होने 1750 ई0 तक फतेहपुर पर कब्जा रखा। जिसे फतेहपुर के पठानो द्वारा पुनः प्राप्त कर लिया गया। तीन साल बाद सफदरजंग द्वारा पुनः विजय प्राप्त कर लिया गया और 1801 ई0 में इसे अंग्रेजो को सौंप दिया गया।फतेहपुर शेखावाटी, राजस्थान शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले का एक छोटा सा शहर है। यह आजकल आसपास के गांवों के लिए एक तहसील कार्यालय है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि फतेहपुर की स्थापना नवाब फतेह खान ने 1451 में की थी।
फतेहपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। गंगा और यमुना नदियों के बीच बसे इस शहर का नाम बाबू फतेह चंद्र के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई की मदद की थी। यह राज्य की राजधानी लखनऊ से 120 किमी (75 मील) दक्षिण में स्थित है।
फतेहपुर: असोथर के राजा भगवंतराय खींची के वीरता की कहानी पूरे फतेहपुर जनपद में सुनने को मिलती है. राजा भगवंत राय खिंची के वंशज आज भी 278 साल पुराने राजशाही महल में रहते है. असोथर के लोगों में रियासती आबो हवा साफ झलकती है.संस्कृति और विरासत
हिंदू मंदिरों और जैन और बुद्ध श्राइनों के शिलालेख जो गुप्त और बाद के गुप्ता काल में जाते हैं और समकालीन इमारतों की कला और वास्तुकला की गुणवत्ता साबित करते हैं कि उस समय जिले के लोग शिक्षित और सभ्य थे।

12 वीं शताब्दी के बाद, कुछ हिस्सों ने जो इन हिस्सों में बस गए थे, अपने स्वयं के मक्काब (स्कूल) की स्थापना की, कई मस्जिदों और शिक्षकों से जुड़े थे ।

जिले में विरोधी-क्विटी से धर्म के लिए पवित्र स्थानों पर इमारतों की वास्तुकला उदा। असनी, असोथार, बहौ, बिंदकी, रेनंद गुनीर मुख्य रूप से भारतीय अवधारणा में हैं जबकि निर्माण मूल रूप से मुस्लिम काल के लिए खोज रहे हैं। अमौली, देवमाई, फतेहपुर, हस्वा, मालवा में बड़े पैमाने पर वास्तुकला की भारत-मुस्लिम शैली का पालन करते हैं।

मौसमी लोक-गीत वसंत ऋतु में होरी या फाग, बरसात के मौसम में मल्हार और काजरी है।

मुशैरस और कवी-सैमेलियन, जिनके नाम पर उर्दू और हिंदी कवि सम्मानपूर्वक अपनी कविताओं को पढ़ते हैं, शहरी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हैं।
श्री दरियाव सिंह: वह इस जिले के उन शहीदों में से एक थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के युद्ध में अपनी सबकुछ बलिदान की थी। उन्होंने अपने बेटे सुजान सिंह और अन्य लोगों के साथ 8 जून, 1857 को जिले के खागा उप-विभाजन पर कब्जा कर लिया। 11 जुलाई तक, जिला क्रांतिकारियों के नियंत्रण में था।
36 दिनों तक लटकते रहे थे क्रांतिकारियों से शव

संवाद सहयोगी, बिंदकी (फतेहपुर) : आजादी के इतिहास में प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान देश की इकलौती ऐसी घटना जिसमें अंग्रेजों ने एक साथ 52 लोगों को इमली के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था। पेड़ पर 36 दिनों तक क्रांतिकारियों के शवों को चील और कौवे नोच नोच कर खाते रहे। जिले की बिंदकी तहसील में इमली के पेड़ को इस घटना के बाद से बावन इमली के नाम से जाना गया। आजाद भारत में यह स्थान बलिदान स्थल घोषित है।

बिंदकी तहसील मुख्यालय से तीन किमी दूर मुगल रोड पर पारादान गांव में शहीद स्मारक स्थल पर खड़ा इमली का यह पेड़ स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 की इस घटना के 164 साल बीतने के बाद इमली का यह पेड़ बूढ़ा हो चला है, पर मौसम के तमाम झंझावतों को झेलने बाद भी हरा भरा है। 10 मई 1857 को मेरठ की बैरकपुर छावनी में चर्बी वाली कारतूसों को लेकर मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। इसी के साथ फतेहपुर के क्रांतिकारी वीर जोधासिंह अटैया के नेतृत्व में आजादी का बिगुल फूंक दिया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खां इनके सहयोगी थे। क्रांतिकारियों ने 10 जून 1857 को सबसे पहले फतेहपुर कचहरी व कोषागार पर कब्जा कर लिया था। जोधासिंह अटैया का संबंध देश अन्य क्रांतिकारियों से संबंध स्थापित हो गए। अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ने लगे। 27 अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में ठहरे एक दारोगा व सिपाही को उसी घर में जलाकर मार डाला। सात दिसम्बर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेजों के खास मुखबिर को मार डाला। क्रांतिकारियों ने खजुहा को केंद्र बनाया, क्योंकि यहां से चारों ओर आने जानी की बेहतर सुविधा थी। इसी दौरान किसी देशद्रोही ने प्रयागराज से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने यहां क्रांतिकारियों के एकत्र होने की जानकारी दे दी। कर्नल ने क्रांतिकारियों पर हमला कर दिया। हालांकि गुरिल्ला युद्ध में निपुण क्रांतिकारियों ने कर्नल पावेल को मार दिया। इसकी खबर लगते ही अंग्रेजी हुकूमत ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना भेजी। इसमें क्रांतिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। इसके बाद भी जोधा सिंह अटैया व उनके साथियों का हौसला कम नहीं हुआ। नए सिरे से सेना को संगठित करने के साथ ही शस्त्र एकत्र कर धन संग्रह के लिए योजना बनाई। इसके लिए छद्म वेष में प्रवास व संपर्क शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से जोधा सिंह अटैया अरगल नरेश से लड़ाई को आगे बढ़ाने के बारे में सलाह मसविरा कर खजुहा लौट रहे थे। इसी दौरान मुखबिर की सूचना पर घोरहा गांव के पास कर्नल क्रिस्टाइल की घुड़ सवार सेना ने घेर लिया। कुछ देर तक लड़ाई के बाद अंग्रेजों जोधा सिंह व उनके 51 क्रांतिकारी साथियों को बंदी बना लिया गया। 28 अप्रैल 1858 को पारादान गांव के पास सभी को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया।

कंकाल उतारकर गंगा तट पर किया गया अंतिम संस्कार

28 अप्रैल 1858 को फांसी पर लटकाए जाने के बाद ठाकुर जोधा सिंह अटैया व उनके 51 क्रांतिकारी शव इमली के पेड़ पर लटकते रहे। अंग्रेजों ने मुनादी करा दी कि जो भी शव उतारेगा उसे भी फांसी दे देंगे। चार जून 1857 को ठाकुर महराज सिंह ने क्रांतिकारियों को एकत्र कर इमली के पेड़ से कंकाल उतर कर शिवराजपुर गंगा तट पर अंतिम संस्कार कर दिया।

बलिदानी स्थल का हो रहा विकास

बलिदानी स्थल बावन इमली में सरकार लगातार विकास के काम करा रही है। यहां पर बलिदानी स्थल को हरा भरा बनाकर प्रकाश की समुचित व्यवस्था की गई है। रात में बलिदानी स्थल पर प्रकाश होते ही विहंगम दृष्य दिखता है।

बलिदान दिवस पर होगा प्रणाम इंडिया कार्यक्रम

इंडियन प्रेस एसोसिएशन के सचिव दिलीप पांडेय ने बताया कि आजादी के अमृत महोत्सव पर एक शाम जोधा सिंह अटैया के नाम पर उनकी जन्मस्थल रसूलपुर में आयोजित की जाएगी। कार्यक्रम में श्रद्धा सुमन अर्पण, भजन संध्या व दीपदान के कार्यक्रम होंगे। कार्यक्रम आयोजन में जोधा सिंह अटैया समिति भी पूर्ण सहयोग करेगी। इस पूरे कार्यक्रम को प्रणाम इंडिया नाम दिया गया है।

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