मेरी अवाज
पत्रकार के सहारे चर्चित होना सभी चाहते हैं. नेता हो या अधिकारी सभी मुखपृष्ठ में आना चाहते हैं. सभी न्यूज़ के हेड लाइन में आना चाहते हैं. सभी अपने पक्ष की बात करना चाहते हैं. वह आशा करते हैं पत्रकार हमारी अच्छाइयां दिखाएं. पत्रकार की नैतिक जिम्मेदारी भी होती है और अगर वह अधिकारियों नेताओं की सुनता है तो पब्लिक रूठ जाती है. जनता पत्रकारों पर विश्वास करती है. उनका विश्वास उठने लगता है जब उनकी कोई नहीं सुनता. तब एक पत्रकार ही है जो उनकी पीड़ा सरकार के दफ्तरों तक सरकार के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक एक आम आदमी की आवाज को पहुंचाने का काम करता है. अगर बालू निकलने के खिलाफ लिखें तो अधिकारियों का मूड बिगड़ जाता है और माफिया जान के दुश्मन बन जाते हैं. समाज का हर तबका मीडिया से सिर्फ कवरेज चाहता है वह यह कभी नहीं जानने की कोशिश करता जिससे मैं कवरेज चाहता हूं उसको तनख्वाह तो मिलती है कि नहीं या उसके घर में चूल्हा जलता है कि नहीं. साल में दो त्योहार आते हैं पत्रकारों के जिन्हें राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है 15 अगस्त और 26 जनवरी. इसमें पत्रकार अधिकारियों के पास जाकर अपने प्रेस के लिए विज्ञापन मांगता है. उस विज्ञापन का कुछ हिस्सा उसको मिलता है. उससे उसके बच्चों का और उसका पालन पोषण होता है. इसके बाद भी जो लोग कवरेज चाहते हैं. पत्रकारों के आसपास रहना चाहते हैं. उनके द्वारा चर्चित होना चाहते हैं. वह कभी उनका दर्द नहीं समझते जब विज्ञापन की बात करो उनसे तो वह आनाकानी करते हैं. यह नहीं सोचते इसी विज्ञापन से इन्हें और उनके परिवार को भरण पोषण होता है. यह एक पत्रकार की पीड़ा जो कोई नहीं समझता फिर भी पत्रकार अपना फर्ज निभाता है और जो भी गलत कार्य होते हैं उनको उजागर करने का काम करता है. शासन के लोग अगर गलत करते हैं उन्हें भी आईना दिखाने का काम करता है. अधिकारियों को भी गलत करने से रोकने की कोशिश करता है. आम आदमी की आवाज को ऊपर तक पहुंचाने का कार्य करता फिर भी पत्रकारों से लोग नाराज. जरा कल्पना करें एक पत्रकार कैसे जीता है कैसे-कैसे उसको धमकियां मिलती हैं अपनी जान को जोखिम में डालता है फिर भी अपने देश के साथ अपने लोगों के साथ अपने समाज के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहता है. यह होता है एक पत्रकार. गौरतलब है कि पत्रकारों पर मानहानि का मुकदमा करने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सलाह दी है कि वे पत्रकारों के प्रति सहनशील बनें. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि प्रेस की बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी ‘पूर्ण’होनी चाहिए और ‘कुछ गलत रिपोर्टिंग’होने पर मीडिया को मानहानि के लिये नहीं पकड़ा जाना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक पत्रकार और मीडिया हाउस के खिलाफ मानहानि की शिकायत निरस्त करने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुये ये बात कही. पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में, आपको (याचिकाकर्ता) सहनशीलता सीखनी चाहिए. किसी कथित घोटाले की रिपोर्टिंग करते समय उत्साह में कुछ गलती हो सकती है. परंतु हमें प्रेस को पूरी तरह से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए. कुछ गलत रिपोर्टिंग हो सकती है. इसके लिये उसे मानहानि के शिकंजे में नहीं घेरना चाहिए.’

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