- हर साल की तरह इस साल भी अकीदत के साथ मनाया गया मोहर्रम का त्यौहार
- अकीदतमंदों ने ताजिया के सामने नौहा – मातम करके दिया शहीदे आज़म और उनके साथियों को पुरसा
- देर रात करबला में किया गया ताजिया को सुपुर्द -ए -ख़ाक
- सुल्तानपुर घोष गांव में हिंदू – मुस्लिम एकता की दिखती आई है मिशाल
फतेहपुर। जन्नत तवाफ करती है उस सरज़मीन का, जिस पर हुआ है आखिरी सजदा हुसैन का इसी के साथ ही प्यासे हो मरने न जाओ रे, सुन बाबुल मोरे तथा ये चांद तारे ये फूल कलियां हुसैन का गम मना रहे हैं जैसे गम-ए-हुसैन में डुबो देने वाली ये नौहाख्वानी, दुध मुंहे अजादारों के कता का मातम, जवान व बुजुर्गों की सीनाजनी और ब्लेड, छुरी व जंजीरों के मातम से जगह-जगह खून के धब्बों से सुर्ख हुईं सड़क विभिन्न इलाकों में देखने को मिली। दसवीं मोहर्रम यानी यौमे आशूरा के मौके पर बुधवार को अधिकांश हर कहीं ऐसा ही आलम देखने को मिला था। मुस्लिमों की आबादी वाले हर इलाके में चप्पा-चप्पा बुधवार को शहीदे आज़म या हुसैन के नारों से गूंज उठा।
बताते चलें कि जिले में हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत की याद में निकाला जाने वाला जुलूस पूरी अकीदत व एहतराम के साथ कर्बला में ताजिए दफन पर खत्म हुआ। हर अंजुमन के अलम के साथ नौहाख्वानी होती दिखाई दी, उनके कलामों के एक-एक शब्द अज़ादारों को हज़रत हुसैन की शहादत की याद में गमगीन कर देते रहे हैं। चाहे वह बुजुर्ग हों या जवान या फिर मासूम बच्चे ही क्यों न रहे हों हर किसी की आंखें नम हो उठती और माहौल सिसकियों से गमगीन हो जाता रहा है। खागा तहसील क्षेत्र के सुल्तानपुर घोष गांव में भी युवाओं ने यादे कर्बला में करतब दिखाकर यानी अखाड़ा लगाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। बच्चों ने भी छोटी-छोटी तलवारें, बाना और लकड़ी लेकर उत्साहित होकर या हुसैन हक हुसैन के नारे लगाए। बुधवार को सुल्तानपुर घोष गांव में 4 बजे शाम को इमामबाड़ा से ताजिया उठाकर अपने कदीमी रास्ते का सफर तय करते हुए निर्धारित जगहों पर रुकते – रुकते हुए नौहा और मातम के साथ ही अखाड़ा भी लगता रहा तथा जगह – जगह पर मिठाई, पुलाव, शरबत, कोल्ड ड्रिंक्स आदि कई प्रकार की चीजों का लंगर भी आम तौर पर होता रहा है जिसको उपस्थित सभी धर्म और समुदाय के लोगों ने जमकर चखा है। आखिरकार रात में वो वक्त भी आया जब लोगों ने ताजिया के शक्ल में इमाम हुसैन और करबला के 72 शहीदों और उनके घराने वालों को आखिरी विदाई देते हुए सलातो सलाम पेश करके करबला ले जाकर अकीदत के साथ सुपुर्दे खाक करते हुए फातिहा पढ़कर मुल्क में अमन, चैन की दुआ मांगी गई है। हर बार की तरह इस बार भी सुल्तानपुर घोष गांव हिंदू – मुस्लिम एकता का प्रतीक की मिशाल कायम करने का साक्षी बना है जहां हर वर्ग एवं समुदाय ने इमाम हुसैन का सम्मान किया है और जुलूस के साथी बने हैं। इस दौरान जुलूस की सुरक्षा एवं निगरानी में स्थानीय पुलिस, राजस्व कर्मी, मीडिया कर्मी एवं है जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी तरीके से निभाया है।
मोहर्रम कमेटी सुल्तानपुर घोष के सरपरस्त शीबू खान (पत्रकार), मोहम्मद जुबैर, मोहम्मद अनवार, नाजिम अली, रानू, जैनुल आब्दीन, आफताब आलम, जुनैद हक़, हासिम अली, मोहम्मद तौसीफ, मकसूद हसन, सरफराज़ आलम, अशफ़ाक सिद्दीकी, अफसर सिद्दीकी, शोएब सिद्दीकी, बबलू सिद्दीकी, सोनू सलमानी, वसीम कुरैशी आदि ने सभी का इस्तकबाल किया है। वहीं कमेटी के सदर फैजान अली और उनकी कमेटी के सभी सदस्यों ने सक्रियता से अपनी जिम्मेदारी निभाई है। इस दौरान मौलाना व क़ारी सद्दाम हुसैन, हाफ़िज़ सरवर हबीबी तथा गांव के ही पेश इमाम हाफ़िज़ शरीफ़ अहमद ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए लोगों को अल्लाह, अल्लाह के रसूल और रसूल के नवासे इमाम हसन – हुसैन के फरमान और इस्लामी बातों को बताकर लोगों का ईमान ताजा किया है।