बरसाने बरसन लगी, नौमन केसर धार।
ब्रजमंडल में आ गया, होली का त्यौहार।।

हे वृंदावन, गोकुल, मथुरा, उत्तम भाग तुम्हारे !
गोप, गोपियों की होली को, देखें नैन हमारे !!

होली में अबके हुआ, बड़ा अजूबा काम।
साँवरिया गोरा हुआ, गोरी हो गई श्याम।।

केसरिया बालम लगा, हँस गोरी के अंग।
गोरी तो केसर हुई, साँवरिया बेरंग।।

घर से निकली साँवरी, देख-देख चहुँ ओर।
चुपके रंग लगा गया, इक छैला बरजोर।।

आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद।
साजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद।।

होली, होली, हो ही ली, होनी थी जो बात।
हौलेसे हँसली हँसी, कल फागुन की रात।।

जवा कुसुम के फूल से, डोरे पड़ गये नैन।
सुर्खी है बतला रही, मनवा है बेचैन।।

बरजोरी कर लिख गया, प्रीतरंग से छंद।
ऊपर से रूठी दिखे, अंदर है आनंद।।

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