अपील – आइएं मिलकर एक कदम ससपेंशन की ओर हम भी बढ़ाएं : वरिष्ठ समाजसेवी अरविन्द पुष्कर एडवोकेट
आगरा। भारत में सदैव लाचार, गरीब, जरुरतमंदों और बेसहारा की हमेशा मदद की जाती है और अलग-अलग प्रकार से खाने के प्रबंध किए जाते हैं। आज़ हमारी इन्ही शानदार परम्परा को यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े बड़े देशों में ससपेंशन नाम से अपनाया जा रहा हैं। विदेशी हमारी संस्कृती की अच्छी सोच को बढ़ाते हुए वहां जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाकर सराहनीय कार्य कर रहें हैं।
इस सन्दर्भ में राष्ट्रवादी सामाजिक चिंतक एवं वरिष्ठ समाजसेवी अरविन्द पुष्कर एडवोकेट ने कहा कि भारतवर्ष सच्ची मानवता के मसीहाओं और दानवीरों की भूमि रही हैं, हमारी सभ्यता में तो ऐसा सदियों से होता आया है। ये हम सभी भारतीयों के लिए बहुत ही गर्व की बात हैं कि हमारी सदियों पुरानी सभ्यता को विदेशों में ससपेंशन नाम से अपनाया जा रहा हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार यूरोप और अमेरिका में सहित कई शहरों में आजकल आमतौर पर एक दृश्य देखा जाता है कि एक रेस्तरां है। उसके कैश काउंटर पर एक लोग आते हैं और कहते हैं कि – 5 कॉफ़ी, 1 ससपेंशन फिर वह पांच कॉफी के पैसे दे देते है और चार कप कॉफी ले जाते है। थोड़ी देर बाद, एक और आदमी आता है और कहता है कि 4 लंच 2 ससपेंशन वह चार लंच का भुगतान करता है और दो लंच पैकेट्स ले जाता है। फिर एक और आता है आर्डर देता है 10 कॉफ़ी, 6 ससपेंशन वह दस के लिए भुगतान करता है, चार कॉफी ले जाता है, फिर थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग व्यक्ति जर्जर कपड़ों में काउंटर पर आकर पूछता है- एनी ससपेंडेड कॉफ़ी ? काउंटर पर मौजूद व्यक्ति उनसे कहता हैं हाँ, और एक कप गर्म कॉफी उसको दे देती है। कुछ देर बाद वैसे ही एक और दाढ़ी वाला बुजुर्ग आदमी अंदर आता है और पूछता है कि एनी ससपेंडेड लंच ? तो काउंटर पर मौजूद व्यक्ति गर्म खाने का एक पार्सल और पानी की एक बोतल उस बुजुर्ग आदमी को दे देता है और यह क्रम अधिक पेमेंट करने बाले दानदाताओं और बिना पेमेंट खान-पान ले जाने बाले बुजुर्ग जरूरतमंदों का दिन भर चलता रहता है। यानी अपनी पहचान न कराते हुए और किसी के चेहरे को जाने बिना भी अज्ञात गरीबों, जरुरतमन्दों की मदद करना विदेशी नागरिकों की कल्चर बन गया हैं और यह कल्चर अब यूरोप के अन्य कई देशों में आजकल बहुत तेजी से फैल रहा हैं लेकिन हमारे भारत में यूरोप से भी पहले से यह परंपरा चल रही है। ये अलग बात है की हम आप अपने देश में नहीं देख पाये, यूरोप वाले हमारे देश से ही सीखकर इसको आगे बढ़ा रहे हैं। ये हमारी संस्कृती हैं, यह बहुत अच्छी परंपरा है कि जाहिर किये बगैर किसी भूखे को खाना खिला देना बहुत ही सुन्दर पद्धति का अति उत्तम विधान है। इसे एक अच्छी सोच के साथ यहां भी शुरू करनी चाहिए। अच्छे विचार का स्वागत होना चाहिए। इसमें एक बात अच्छी लगी कि लोग मदद करने के बदले अपने नाम का प्रचार नहीं चाहते हैं। यही भावना अपने देशवासियों में भी होनी चाहिए मदद करने का तरीका कुछ भी हो, भिक्षा न देकर ऐसे भी भलाई का काम किया जा सकता है और हमारी तो परंपरा है कि भोजन पानी बांटकर ही लें, अकेले करना अशोभनीय है, जब भी भुखा प्यासा जरूरतमंद मिले उसे भोजन पानी देना चाहिए।
श्री पुष्कर ने आगे कहा कि भारत में भी खान-पान की “ससपेंशन” जैसी प्रथा प्रारंभ हो सकती है क्योकि हमारी संस्कृती से संस्कार ही ऐसे होते हैं। यही सत्य है। ये दान का महत्व ही है कि जब एक हाथ दे तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। इसी अच्छी पहल कहीं भी हो अपनाना चाहिए। भंडारे हो या लंगर नाम सिर्फ भाषा के कारण अलग हो सकते हैं। मानवता की सेवा सर्वोपरि है। इसीलिए यहां प्रीतिदिन अलग – अलग तरीके से गरीबों और असहायों की मदद की जाती है। ये हमारी सभ्यता की बहुत अच्छी सोच है। दान वही सही है जिसमें एक हाथ से करे और दूसरे हाथ को पता भी ना चले। भारत के अंदर भी ऐसे कई परंपराएं हैं जो गरीबों को भोजन करने की शादी विवाह में एक दूसरे की मदद करना। यह हमारी परंपरा रही है और आगे भी यही परंपरा रहनी चाहिए। आज भी हमारे देश में कई स्थानों पर बिना किसी को बताए सद्कर्म कर रहे हैं। भारत में पहले भी थी ये प्रथा और अब भी है। इसे गुप्तदान कहा जाता ही है। बस ये विदेशों में “ससपेंशन” नाम से बताया जाता हैं और भारत में छुपाया जाता है। भारत में जो है, वो पूरी दुनियां में नहीं है। हमारी सभ्यता में प्रसाद, लंगर, भंडारा और दान पुण्य हर जगह हैं। इसीलिए आजकल पूरी दुनियां के लोग हमारी सभ्यता अपना रहें हैं क्योकि भारत में हर जीव को खिलाया जाता है। क्योकि पुंण्य मुश्किल से मिलता है, परन्तु इसे करने में बड़ा सुकून मिलता है। भारत तो सदियों से लंगर चलाकर लोगों को मेहमान बनाकर भोजन कराता आया है। भारत मे गुप्त दान की परम्परा रही है, हमारी विदेशों में अपनायी यह व्यव्स्था तत्काल लाभ देता है। दान करने कैसे बेहतर कोई तरीका हो ही नहीं सकता। यह बहुत अच्छी सोच है, भारत में भी ऐसा हो जाए तो कोई गरीब भूखा नहीं सोएगा। आइए हम सब मिलकर शुरुआत करे।