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हिंदी दैनिक मैथिली प्रसंग समाचार पत्र 06 मार्च 2024 के
*संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित बलवान सिंह का आलेख*
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बलवान सिंह
सांसद बाराबंकी का एडिटेड वीडियो का वायरल होना कोई पहला मामला नहीं है। पहले भी अनेक डीप फेंक वीडियो वायरल हो चुके हैं।कुछ दिन पहले कर्नाटक राज्य में जन्मी कन्नड़ एवं तेलगू फिल्मों की ऐक्ट्रेस रश्मिका मंडाना का एक आपत्ति जनक वीडियो सामने आया था जिस पर फ़िल्म जगत से लेकर राजनीति तक के लोगों में गरमागरम बहस छिड़ गई थी। एक्ट्रेस रश्मिका मंडाना डीपफेक नामक टेक्नॉलाजी का शिकार हुईं। इसके बाद यह डीपफेक एआई टूल पहलीबार आम चर्चा का विषय बन गया। इसके परिणाम इतने खतरनाक हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस डीप फेंक ए आई तकनीक को खतरा बताते हुए चिंता जताई थी, कहा था कि भविष्य में यह तकनीक एक बड़े संकट की वजह बन सकता है।
कुछ दिन पहले इसी खतरनाक डीप फेंक तकनीक के प्रयोग से क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का एक एडिटेड वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ। जिसमें सचिन द्वारा अपनी बेटी को खेल का एक एप प्रयोग करने की बात कहते हुए लोगो से एप डाउनलोड करने की सलाह दी जाती है। जिसका खंडन सचिन तेंदुलकर ने कहा था कि मेरा यह वीडियो डीपफेंक एडिटेड है इस पर भरोसा न करें, एप डाउनलोड करने से संकट में आ सकते हैं एकॉउंट भी खाली हो सकता है।
और अब सम्भवतः इसी खतरनाक “डीप फेंक ए आई” तकनीक से उत्तर प्रदेश बाराबंकी के सांसद उपेन्द्र सिंह रावत का वायरल वीडियो उनकी छवि को धूमिल कर रहा है। यह वीडियो 03 मार्च 2024 को 12 बजे के आसपास लोगों के मोबाइल पर आना शुरू होता है और देखते ही देखते 3 बजे तक लगभग सम्पूर्ण बाराबंकी के कोने कोने तक पहुँच गया था। सांसद उपेन्द्र सिंह रावत पुनः प्रत्याशी बनाये जाने के बाद दूसरे दिन यानि 03 मार्च को विभिन्न धार्मिक स्थलों पर पहुँचकर दर्शन कर देव आशीर्वाद प्राप्त करने में व्यस्त थे। उन्हें वहीं जानकारी प्रप्त होती है और मुख्यालय पर उपस्थित अपने निजी सचिव दिनेश रावत को भेजकर तत्काल नगर कोतवाली बाराबंकी में प्राथमिकी अंकित करा देते हैं। व्यावसायिक जानकारों द्वारा प्रथम दृष्टया इस वीडियो को डीप फेंक एआई तकनीक के उपयोग से बनाया गया बताया गया है। पूरी सच्चाई तो विशेषज्ञों की जांच के बाद ही सामने आएगी।
डीप फेंक एआई तकनीक का नाम अधिकांश लोग पहली बार सुन रहे हैं। जागरूक नागरिक सशक्त लोकतंत्र का निर्माण करते हैं। जिस तकनीक को देश के प्रधानमंत्री जी खतरनाक बता चुके हों ऐसी “डीप फेंक एआई” तकनीक से आमजन को परिचित होना एवं जागरूक होना जरूरी है।
डीपफेक शब्द डीप लर्निंग अल्गारिद्म टेक्नोलाजी से आया है। ये टेक्नोलॉजी खुद को आंकड़ों की मदद से समस्याओं का समाधान करना सिखाती है और इसका इस्तेमाल रियल व्यक्ति का फेक कंटेंट बनाने में किया जा सकता है। वैसे तो डीपफेक बनाने की प्रकिया जटिल है लेकिन इसके साफ्टवेयर तक पहुंच आसान है । कई एप नए लोगों के लिए भी डीपफेक बनाना आसान बना देते हैं।
“डीप फेक ए आई” एडिटिंग की एक ऐसी तकनीक है जिससे किसी रियल वीडियो में दूसरे व्यक्ति के चेहरे को फिट करके वीडियो बनाया जाता है। आम जन के लिए देखने में यह एडिटेड वीडियो रियल लगता है। यानि वीडियो में किसी के चेहरे पर फिट किये गए दूसरे व्यक्ति के चेहरे को ही रियल मान लिया जाता है। क्योंकि दूसरे व्यक्ति का चेहरा ही असली की तरह दिखता है।
बहुत से साफ्टवेयर तथा एप उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से नए-नए लोग भी बहुत आसानी से वीडियो की एडिटिंग कर किसी के चेहरे पर किसी का चेहरा फिट कर सकते हैं। जैसे चीनी एप जेडएओ डीपफेस लैब फेकएप और फेस स्वैप । यही नहीं ओपन सोर्स डेवलपमेंट कम्युनिटी “गिट हब” पर बड़ी संख्या में डीपफेक साफ्टवेयर उपलब्ध हैं। ऐसे फोर्ज वीडियो बनाने के लिए एआइ की मदद ली जाती है।
डीपफेक बनाने के कई तरीके हैं। लेकिन सबसे आम तरीके में डीप न्यूरल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए फेस स्वैपिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। इसके लिए पहले डीपफेक के आधार के तौर पर इस्तेमाल के लिए टारगेट वीडियो की जरूरत होती है और इसके बाद उस व्यक्ति की वीडियो क्लिप का कलेक्शन चाहिए होता है, जिसे आप टारगेट वीडियो में डालना चाहते हैं। वीडियो एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिए डीप फेंक बनाने वाला एक हॉलीवुड फिल्म की क्लिप लेकर उसमें हीरो अथवा हीरोइन के असली चेहरे पर किसी भी अन्य का वीडियो फिल्म में डालना चाहते हैं, वो यूट्यूब से डाउनलोड की गई कोई भी क्लिप हो सकती है अथवा कोई दूसरा वीडियो।
प्रोग्राम कई कोणों और स्थितियों से अंदाजा लगाता है कि व्यक्ति कैसा दिखता है और फिर साझा फीचर्स ढूंढ कर उस व्यक्ति को टारगेट वीडियो में दूसरे व्यक्ति की जगह पर डाल देता है। इसके बाद जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (जेएएन) की मदद से इसे मिक्स किया जाता है। ये कई राउंड में डीपफेक में किसी भी तरह की कमी को पहचान कर उसे दूर करती है। इस प्रकार कई राउंड में बनाये गए डीपफेक की पहचान करने वालों के लिए इसे आसानी से डिकोड करना कठिन हो जाता है।
फिर भी ऐसे कई संकेतक हैं जिनके आधार पर किसी डीपफेक वीडियो की पहचान आमजन भी कर सकते हैं। जो निम्नलिखित है-
1- डीपफेक तकनीक से बनाये गए वीडियो में प्रायः आवाज म्यूट कर दी जाती है क्योंकि दूसरे की लिपसिंग से आवाज को मिलाना कठिन होता है। वीडियो फेक होता है लेकिन मूल आडियो के साथ सावधानी से छेड़छाड़ नहीं की गई है तो हो सकता है कि व्यक्ति का आडियो मैच न करे। आवाज का मिलान एक अत्यंत हाई तकनीक के इस्तेमाल से ही संभव है जो सामामन्य व्यक्ति के वश का नहीं होता।
2- प्रायः कंटेंट डिटेल्स धुंधली या अस्पष्ट रहती है।
3- चूंकि शरीर किसी और का होता है और चेहरा किसी अन्य का। इसलिए त्वचा या बालों में किसी तरह की समस्या रह ही जाती है। यानि मिलान असम्भव जैसा होता है।
4- कई बार लाइटिंग अप्राकृतिक जैसी दिखती है। आम तौर पर डीपफेक अल्गारिद्म फेक वीडियो के लिए माडल के तौर पर इस्तेमाल की गई क्लिप की लाइटिंग को ही लेता है। लेकिन टारगेट वीडियो की लाइटिंग से इसे मिलाने पर फर्क दिख सकता है।
5- क्या सोर्स भरोसेमंद लग रहा है। यानी जिसने विडियो वायरल किया है उसका उद्देश्य क्या है। पत्रकार, विशेषज्ञ और शोध करने वाले इमेज का सही सोर्स चेक करने के लिए रिवर्स इमेज सर्च तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। ये भी देखना चाहिए कि इमेज किसने पोस्ट की है, कहां से पोस्ट की गई है, और इमेज पोस्ट करने का कोई मतलब बनता भी है या नहीं।