अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चारों तरफ माहौल भक्तिमय दिख रहा है। राम मंदिर के आंदोलन पर नजर डालें तो बाराबंकी इसका मुख्य केंद्र रहा है। 23 सितंबर 1949 को रामजन्म भूमि में प्राकट्य उत्सव में मुख्य भूमिका निभाने वाले संत अभिराम दास का नाम सबकी जुबान पर है। जिले में लंबे प्रवास के दौरान बाराबंकी के कंधईपुर को उन्होंने मुख्य स्थान ही नहीं बनाया, बल्कि अपने जन्म स्थान की तरह उसे अपना लिया।
अयोध्या के हनुमानगढ़ी से आकर यहां उन्होंने स्कूल और मंदिर का निर्माण कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा को जारी रखा। आपातकाल लगने के एक सप्ताह के भीतर उनकी गिरफ्तारी हुई और वह लंबे समय तक जेल में रहे। इस दौरान उनके अनुयायियों की बड़ी फौज खड़ी हो गई। जिले में रहकर ही राम मंदिर आंदोलन को वह धार देते रहे।
राम मंदिर आंदोलन में जो प्रमुख लोग अहम भूमिका में रहे, उनमें बाराबंकी को अपना दूसरा घर बताने वाले स्वामी अभिराम दास की याद बरबस सबके सामने है। उनके साथ जेल में रहे अजय गुरू बताते हैं कि अभिराम दास का आध्यात्मिक व्यक्तित्व था। बताते हैं कि वह कहते थे कि इस जीव का सब कार्य सुनिश्चित है और वह सब अपने आप हो रहा है, उसमें आप और हम कुछ नहीं कर रहे हैं। ईश्वर ने अपने संकल्प में जैसा रच रखा वही हो रहा है। प्रभु का प्रत्येक विधान मंगलमय है और वह सब हमारे कल्याण के लिए ही हो रहा है। जैसे विचार रखने वाले संत से प्रभावित होकर कंधईपुर गांव में एक मुस्लिम ने जमीन दान की थी। उस पर हनुमान मंदिर बनवाया।
महंत अभिरामदास ने कंधईपुर में बनवाया था मंदिर
अखिल भारतीय निर्वाणी अनी अखाड़ा, अयोध्या के अध्यक्ष और दिवंगत महंत अभिराम दास के शिष्य महंत धर्मदास महाराज बताते हैं कि हनुमानगढ़ी अयोध्या के महंत अभिरामदास ने बाराबंकी के मसौली ब्लाक के कंधईपुर गांव को भी कुछ दिन अपनी कर्मस्थली बनाए रखा। उन्होंने हनुमान मंदिर के साथ ही एक विद्यालय भी खुलवाया। जहां बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती थी। रसौली के पास हड्डी फैक्टरी लगनी थी। महंत जी ने उसका पुरजोर विरोध किया। इसलिए फैक्टरी नहीं खुली। वह शुरू से ही राम मंदिर के पक्षधर थे। गांव में जाकर राम धुन गाते थे। बाराबंकी से उनका असीम लगाव था। इसीलिए वह कुछ जमींदारों की आंखों की किरकिरी बन गए थे। इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया था।