जीर्ण हालत मे फाटक का नही होता कही जिक्र
फतेहपुर(बिंदकी)।आजादी के दिवानो ने जहाँ अपना ठिकाना बनाया क्रूर अग्रेंजो ने वो सभी स्थान ध्वस्त कर डाले बची तो केवल उनकी यादें।बिंदकी के बुजुर्ग भी अब उस स्थान के बारे मे ज्यादा जिक्र नही करते जो आजादी की लड़ाई का मूक प्रत्यक्षदर्शी था।बिंदकी नगरी का इतिहास भी समृद्ध है।बिंदकी गल्ला मंडी उस समय भी जब बैलगाड़ी से व्यापार हुआ करता था।खजुहा की तरह ही बिंदकी मे भी ब्रिटिश सैनिको के निर्बाध आवागमन और गश्त के लिए फाटक बनाया गया था जो आज भी मौजूद है।मेहराबदार यह फाटक ब्रिटिश कालीन ही बर्बरता का प्रतीक है।इसकी उचाई और चौड़ाई लगभग पंद्रह फीट के आसपास है।ककई ईटो से निर्मित यह फाटक संभवत:दरवाजा विहीन ही रहा क्योकि बुजुर्ग इस बारे मे कुछ सही नही बता पाते है।इस फाटक का आजादी मे योगदान रहा की अग्रेंज अपनी सूचना के लिए मुनादी कराते थे जबकि वालेंटियरो,क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजो की खिलाफत वाली नोटिश इस फाटक की भीतरी दोनों ओर आठ फुटी चौडी दीवारो पर चस्पा कर देते थे।ऐसा करते ही बिंदकी के विश्वसनीय वालेंटियर केदारनाथ ओमर को गिरफ्तार कर लिया था।इसी दीवार पर अग्रेंजो द्वारा एक लेटर बाक्स टँगा था जिसे आजादी के दिवानो ने जलाने का प्रयास किया था।नेहरू इंटर कालेज की प्रकाशित एक वार्षिक पत्रिका मे इसके कई संसमरण मिलते है।वालेंटियरो द्वारा यही से जुलूस निकाले जाते थे पुलिस के घुडसवार यही से गश्त करते थे।कहा जाता है यही फाटक के पास विदेशी कपड़ो की होली भी जलाई गई थी। क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के बाद फाटक के पास ही एक कार्यालय था जहाँ रखा जाता था।बीते जमाने के साथ ही अब केवल फाटक बचा है बाकी का कुछ अतापता नही है।इस ओर फाटक के इतिहास से अनभिज्ञ लोग इसे केवल पत्थर की दिवारे समझ निकल जाते है।