रोज सुबह दो-तीन पत्ती नीम की खा लिया करो जिससे रक्त का शुद्धिकरण हो जाएगा, पेट के कीड़े भी इससे खत्म हो जाते हैं

संविधान रक्षक जिला संवाददाता उमेश तिवारी बाराबंकी

बाराबंकी। उत्तर प्रदेश परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना शरीर में ये तीन नाड़ियां शरीर को ताकत देती हैं। इनकी बहत्तर हजार शाखाएं हैं और वह इतनी छोटी – छोटी हैं कि डॉक्टर भी इनको सूक्ष्मदर्शी यंत्र से नहीं देख पाता है, इसीलिए ऑपरेशन से बचना चाहिए। ऑपरेशन होने के बाद ये नसें जब कट जाती हैं तब सिस्टम बिगड़ जाता है। इनको डॉक्टर नहीं बना पाते हैं; ये वहां नहीं पढ़ाया जाता है। जड़ी- बूटियां और तमाम ऐसी चीजें हैं प्रकृति में जिनको खोजते हैं, रिसर्च करते हैं तब कहीं उनका पता लगा पाते हैं लेकिन महात्माओं को सब मालूम होता है। जैसे शास्त्रों में लिखा है कि जब दाहिना नाक चले तब भोजन लेना चाहिए, क्योंकि उस समय पेट खाली होता है। कभी – कभी भूख लग जाती है लेकिन अंदर से मशीन (शरीर) को जरूरत नहीं रहती है, जैसे शूगर का मरीज कुछ खाता है तो थोड़ी देर बाद फिर से भूख लग जाती है। मान लो बीमारी आ गयी, बुखार – जुखाम आ रहा है तो उपवास शुरू कर दो, गर्म पानी पीना शुरू कर दो जिससे पेट साफ हो जाए, तो बीमारी आनी ही नहीं हैं और आ गयी है तो चली जाएंगी। नीम की पत्ती के लिए कहा गया है कि सारी बाधाओं का निराकरण है। रोज सुबह दो-तीन पत्ती नीम की खा लिया करो जिससे रक्त का शुद्धिकरण हो जाएगा, पेट के कीड़े भी इससे खत्म हो जाते हैं। इसी तरह लहसून फायदा करता है; गैस को खत्म करता है, हार्ट के मरीज के लिए भी फायदेमंद होता है। लेकिन अब इनको कहेंगे तो कहेंगे कि टेस्ट खराब हो जाता है और उसी को जब डॉक्टर कैप्सूल में भर के देता है तो खाते हैं।

हड्डी की चोट, कट और घाव के सरल उपचार

कहा गया है “सौ दवाई और एक सिकाई” जब चोट लगती है तो उस समय नहीं मालूम पड़ता है, लेकिन जब पुरवा हवा चलती है तब जो हड्डी की चोट होती है जैसे घुटना, कोहनी दर्द करने लगता है। तो इस तरह की हड्डी की चोट के लिए एक नींबू बीच से काट दो, फिर कटे हुए हिस्से के ऊपर हल्दी, नमक, थोड़ा सा घी या तेल डाल कर के तवे के ऊपर बर्दाश्त करने लायक बार – बार गर्म कर के सिकाई करते रहो। इसको पंद्रह मिनट सुबह और शाम करने पर दर्द चला जाएगा। जो लोग खेतों में काम करते हैं; मान लो फावड़ा या किसी अन्य चीज से कट गया और दवा नहीं है तो उसके ऊपर पेशाब करना चाहिए; बहुत फायदा करता है, एंटीसेप्टिक का काम करेगा। इसके अलावा यदि नजदीक में अरहर का पेड़ है तो उसकी पत्ती को तोड़ कर के चबाओ और लुगदी जब बन जाए तो उसी को कपड़े से बांध कर के छोड़ दो (ध्यान रहे कि पानी ना पड़े) तो ठीक कर के ही निकलेगा। अगर घर में ही साधन-सुविधा है तो लोहा गर्म करो और थोड़ा सा तेल डाल कर के कटे हुए हिस्से को जला दो तो वह पकेगा नहीं कभी, दर्द तुरंत खत्म करता है।

हर महीने का अलग-अलग आहार – विहार होता है

हर महीने का अलग-अलग आहार – विहार होता है; चैत्र में चना व नींबू पानी लाभकारी है, गुड़ खाने से बचें। वैशाख में बील का शरबत पीएं, तेल न लें। ज्येष्ठ में दोपहर में आराम करें, यात्रा न करें। आषाढ़ में खेलें, बेल का शरबत ना पिएं। श्रावण में हरड़ लें, साग न खाएं। भाद्रपद में चिरोता उपयोगी है, दही-छाछ से परहेज करें। अश्विन(क्वार) में गुड़ लें, करेला नहीं खाएं। कार्तिक में मूली खाएं, दही न लें। अगहन (मार्गशीर्ष) में तेल लाभकारी है, धनिया ना खाएं। पौष में दूध लें, सहवास से बचें। माघ में घी व खिचड़ी लें, मिश्री से बचें। फाल्गुन में सुबह स्नान करें, चना न खाएं।

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