• आईजीआरएस पर शिकायतों की अधिकता को लेकर शासन ने जारी कर रखा है निर्देश
  • बंदरों को पकड़ने वालों को मिलने लगता रोजगार का अवसर

बस्ती। शहर से लेकर गांवों में बंदरों के उत्पात से अधिशासी अधिकारी व ग्राम प्रधान निजात दिलाएंगे। यह फरमान शासन ने लगभग 22 महीने पहले यानी कि 9 जनवरी 2023 को ही जारी कर रखा है। बावजूद इसके शहरी क्षेत्रों में न तो ईओ कोई पहल कर रहे हैं और न तो गांवों में प्रधान दिलचस्पी ले रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि बंदरों के हमले में लोग घायल हो कर लहूलुहान होते जा रहे हैं।
आईजीआरएस पोर्टल पर बंदरों से संबंधित अधिक शिकायतें मिलने पर शासन ने गंभीरता दिखाते हुए ग्राम पंचायतों व नगर निकायों को जिम्मेदारी सौंप दिया है। दूसरी तरफ वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक दीपक कुमार ने अपने सभी जिम्मेदार अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वह शिकायतकर्ताओें को अब अपने संबंधित ग्राम पंचायतों व नगर निकायों को बंदरों को पकड़वाने के लिए शिकायत करें। ताकि वह प्रशिक्षित लोगों की मदद से बंदरों को पकड़ कर जंगल में छोड़ने का कार्य कर सकें। डीएफओ जेपी सिंह ने बताया कि मुख्यालय के निर्देशानुसार शिकायतकर्ताओं को अपने ग्राम पंचायतों व नगर निकायों में आवेदन करने के लिए सूचित किया जा रहा है।
वन्य पशु गणना 2022 के अनुसार जिले में कुल 3097 बंदर मौजूद हैं। इनमें 1337 नर, 919 मादा व बाकी बच्चे हैं। कप्तानगंज रेंज में 613, हरैया में 439 व रामनगर में 477 बंदर विचरण कर रहे हैं, वहीं अकेले बस्ती सदर रेंज में 1446 बंदरों ने धमाचौकड़ी मचा रखी है। यह आंकड़ा उस समय का है जब अयोध्या में श्रीराम लला के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई थी। जबकि प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व व बाद में पूरी अयोध्या में विशाल समूहों में मौजूद बंदरों को आसपास के जिलों के वन क्षेत्रों में लाकर छोड़ दिया गया था। उम्मीद जताई जा रही है कि अब जिले में इनकी संख्या कई गुना ज्यादा बढ़ गई होगी। जो गांवों से लेकर शहर तक ऊधम मचा कर हमलावर हो रहे हैं। वहीं मंडल मुख्यालय पर तो यह स्थिति है कि वार्डवार जब इनका डेरा लगता है तो उस दिन मोहल्ले के लोग छत व आंगन में भी जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। यही नहीं जब कभी इनके झुंड हमलावर हो उठते है तो लोग दुबक जाते हैं। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जानलेवा हमले की घटनाएं सुनने को मिलती रहती हैं।

उत्साही युवाओं ने अब तक चलाया अभियान

वन विभाग के पास पिंजरा व अन्य संसाधन तो हैं लेकिन बंदरों व खतरनाक जानवरों को पकड़ने के लिए कोई विभागीय प्रशिक्षित टीम नहीं है और न ही कोई बजट है। दो साल पहले जेल व जिला प्रशासन की पहल पर बंदरों को पकड़ने का अभियान चलाया गया तो फॉरेस्ट रेंजर राजकुमार ने बस्ती व सिद्धार्थनगर के कुछ उत्साही युवाओं के सहारे डीएम-एसपी व कमिश्नर आवास से लेकर जेल व रेलवे स्टेशन तक लगभग सात सौ बंदरों को पकड़ कर फरेंदा के जंगल में भेजा था लेकिन इस बीच बंदरों के कुनबे बढ़ते चले गए। यही नहीं इन उत्साही युवाओं के दैनिक मजदूरी का भी कोई इंतजाम वन विभाग नहीं कर सका जिससे अभियान पूरी तरह से ठप पड़ गया। दूसरी तरफ खतरनाक जानवरों को भी पकड़ने का कोई इंतजाम नहीं है। जिसकी आवश्यकता तब से और अधिक महसूस की जा रही है जब 12 मई 2018 को हरैया के फरदापुर के एक घर में 12 घंटे तक एक तेंदुआ घुसा पड़ा रहा। वन विभाग को इसे कब्जे में लेने के लिए लखनऊ व सोहगीबरवा की टीम का सहारा लेकर पिंजड़े में कैद करना पड़ा था।
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राष्ट्रीय हिंदी संविधान रक्षक समाचार पत्र

संवाददाता सुशील कुमार गौतम

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