बस्ती। फसलों के अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए पराली प्रबन्धन आवष्यक है। उक्त जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चन्द्र तिवारी ने मण्डल के जनपदों में कृषको को जागरूक करते हुए फसल अवशेष न जलाये जाने का सुझाव दिया है। उन्होने बताया कि पराली जलाने से मृदा की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है तथा पैदावार में गिरावट आती है। कम्बाइन हार्वेस्टर के साथ एस.एम.एस. यंत्र का प्रयोग करे, जिससे पराली प्रबन्धन कटाई के समय ही हो जाय। इसके विकल्प के रूप में अन्य फसल अवशेष प्रबन्धन यंत्र जैसे- स्ट्रा रीपर, मल्चर, पैड़ी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबुल एम.बी. प्लाऊ, स्ट्रा रेक व बेलर का भी प्रयोग कम्बाइन हार्वेस्टर के साथ किया जाय, जिससे खेत में फसल अवशेष बंडल बनाकर अन्य उपयोग में लाया जा सके।
उनहोने बताया कि कम्बाइन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि फसल कटाई के साथ फसल अवशेष प्रबन्धन के यंत्रों का प्रयोग करे, अन्यथा कम्बाइन हार्वेस्टर के स्वामी के विरूद्ध नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जायेगी। उन्होने बताया कि पराली जलाए जाने की घटना पाए जाने पर सम्बन्धित को दण्डित करने, क्षति पूर्ति वसूली यथा 02 एकड से कम क्षेत्र के लिए 2500 प्रति, 02 से 05 एकड के लिए 5000 प्रति तथा 05 एकड से अधिक के लिए 15000 प्रति तक पर्यावरण कम्पन्सेशन की वसूली एवं पुनरावृत्ति होने पर अर्थदण्ड की कार्यवाही का प्रावधान है।
उन्होने बताया कि यदि कोई किसान बिना पराली को हटाए रबी के बुवाई के समय जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल या सुपर सीडर का प्रयोग कर सीधे बुवाई करना चाहता है, तो ऐसे किसानों को कृषि विभाग द्वारा निःषुल्क डी-कम्पोजर उपलब्ध कराया जाता है, जिसके लिए कृषक सम्बन्धित उप सम्भागीय कृषि प्रसार अधिकरी या राजकीय कृषि बीज भण्डार से सर्म्पक कर डी-कम्पोजर प्राप्त कर सकते है। पराली से देशी खाद तैयार करने तथा फसल अवषेष को गोशाला में दान करने के लिए प्रेरित किया गया है।