बाराबंकी। अतीत को याद करते- कि मिट्टी की चीनी भीनी सुगंध कुलाड़ो में बाय की चुस्कियां लेने चाय पीने का असली मजा तो मिट्टी के कुल्हड़ों में था। परंतु जनहां देखो वहां बरवस डाई से निर्मित बने मिट्टी के गिलासों ने चाय का मजा किरकिरा हो रहा। एक होटल के मालिक ने नाम न लिखने की शर्त पर जानकारी साझा की अपने ग्राहक से कहा कि डाई से निर्मित बने मिट्टी कुल्हाड़ों में चाय न पिये, क्योंकि स्वाद रहित चाय होती है , लोगों की मांग व मुॅह मागा पैसा मिलता हैं । विदित रहे, भौनी सुगंध को खुश्बू यदि चाय की चुस्कियां में समाहित हो जाए तो चाप का मजा टूना बढ़ जाता है पुराने जमाने में शादी विवाह जैसे शुभ अवसरों पर प्रायः मिट्टी के कुल्हड़ों का ही प्रयोग किया जाता था। और उस मिट्टी की सुगंध आज भी की चाय की चुस्कियां लेने पर लोगों हर को अपनी ओर आकर्षित कर रही है ।
परंतु बदलते परिवेश में धीरे बरवस डाई से निर्मित बने मिट्टी के गिलासों ने चाय का मजा किरकिरा हो गया । बरबस समयान्तराल कृत्रिम रूप से बनाए गए गिलासों में चाय को चुस्कियां लेना शुरू कर दिए फलतः धीरे-धीरे इन कृत्रिम गिलासों से लोगों का मोहभंग होने लगा । लोगांे का एक बड़ा आरोप केमिकल द्वारा रंग दिया जा रहा। सच्चाई ये, डाई से बने मिट्टी के गिलासों से लोगों के चाय की चुस्कियों का मजा फीका पड़ता हैं ।
इस तरह से डाई के द्वारा मिट्टी के गिलासों का निर्माण करके उपभोक्ताओं को छले जाने का उपक्रम कुछ तथाकथित मिट्टी से गिलास बनाने वाले कारीगरों के द्वारा किया जा रहा है।
एक होटल पर मिट्टी के गिलास में चाय की चुस्कियां लेते हुए एक उपभोक्ता ने बताया कि भाई वे दिन कितने हसीन होते थे जब कुम्हारों के यहां के बने मिट्टी के कुल्हड़ो में चाय पीने को मिलती थी उसकी सुगंध तो आज भी दिल में बसी हुई है परंतु डाई से बने मिट्टी के गिलासों से लोगों के चाय की चुस्कियां का मजा फीका पड़ गया इस तरह से मिट्टी के गिलासों में चाय परोस करके हमसबकों को छला जा रहा है जिधर किसी का भी ध्यान आकर्षित नहीं होता है क्यों ? लोगों के स्वास्थ्य पर चाहे जो असर पड़े किसी को कोई चिंता नहीं है परन्तु सवाल ! प्रशासन से यह एक यक्ष प्रश्न है ,,,,,,