परिवार दिवस पर विशेष –
सभी देशवासियों को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं : वरिष्ठ समाजसेवी राजेश खुराना
विश्व में व्यापक स्तर पर परिवार दिवस मनाया जाता हैं। आज ऐसा समय आ गया है कि एक दूसरे की चिन्ता किए बगैर देश गौरवशाली नहीं बन सकता है। संय़ुक्त परिवरों की संख्या बहुत कम हो गई है। आज हाल यह है कि बच्चे पढ़ाई और स्वतंत्रता के नाते परिवार से अलग रहना शुरू कर देते हैं। इसके कारण कई महत्वपूर्ण चीजें पीछे छूट रही हैं, लेकिन परिवार से बडा कोई धन नही और परिवार के बिना जीना जीवन नही।
इस अवसर पर राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना ने सभी को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाये व्यक्त करते हुए कहा कि आज की वैश्विक महामारियों के चलते कुटुम्ब प्रबोधन की गतिविध की महत्ता बढ़ गई है। हम सब एक परिवार के अंग हैं। इसलिए एक दूसरे की चिन्ता करनी है। आज ऐसा समय आ गया है कि एक दूसरे की चिन्ता किए बगैर देश गौरवशाली नहीं बन सकता है। इसलिए परिवार से बडा कोई धन नही, परिवार के बिना जीवन, जीवन नही। आजकल समाज में देखा जा रहा कि भौतिकता की चकांचौंध और मोबाइल के कारण भी हमारा युवा वर्ग दिशाहीन होता जा रहा है। आधुनिकता के दौर में आज़ वृद्धावस्था में बूढ़े माता-पिता की चिन्ता करने बच्चे कम ही है। वहीं, ‘हम दो हमारे दो’ की अवधारण के कारण माता-पिता अकेले रह जाते हैं। ऐसे में मता-पिता के सुख-दुख की चिन्ता कौन करे? देखने में आ रहा हैं कि बहुत से बच्चे माता-पिता को छोड़कर विदेश में रह रहे हैं। कुछ अशुभ होने पर आने में ही कई दिन लग जाते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आत्मनिर्भर एक प्रयास संस्था ने कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि शुरू की है। केवल उद्देश्य यह है कि एकल परवारों को संस्कारित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम करते रहें। संस्था अपनी शक्ति के साथ सेवा कार्य कर रहा है। हम सब एक परिवार के अंग हैं। इसलिए एक दूसरे की चिन्ता करनी है। हिन्दुत्व की भावना को और प्रबल बनाने का अभियान परिवार के साथ रहेंगे तो हम संस्कारित होंगे। संयुक्त परिवार में स्वयमेव ही संस्कार आते थे। नए जमाने में एकल परिवार हैं, जिससे समस्या बढ़ रही है। वीते कोरोना काल में संयुक्त परिवार की महत्ता का भान हो रहा है। उन्होंने कहा कि वास्तव में परिवार पहली पाठशाला और मां प्रथम शिक्षक है। परिवार राष्ट्र की भी पहली इकाई है। परिवार ठीक होंगे तो अपना भारत राष्ट्र भी समृद्ध होगा। इसी कारण परिवार दिवस पर परिवार की भावना को और प्रबल बनाने का अभियान है।
उन्होंने आगे कहा कि आज ऐसा समय आ गया है कि एक दूसरे की चिन्ता किए बगैर देश गौरवशाली नहीं बन सकता है। संय़ुक्त परिवरों की संख्या बहुत कम हो गई है। आज हाल यह है कि बच्चे पढ़ाई और स्वतंत्रता के नाते परिवार से अलग रहना शुरू कर देते हैं। इसके कारण कई महत्वपूर्ण चीजें पीछे छूट रही हैं। संयुक्त परिवार में संस्कार और संस्कृति से जुड़े रहते हैं। हिन्दी के बारह महीने कितने लोगों को याद होंगे? यह संस्कार और संस्कृति से जुड़ा पहला प्रश्न है। हम सारे त्योहार पंचांग के आधार पर मनाते हैं। जब हमें हिन्दी के महीने पता नही होंगे तो अपनी संस्कृति से कैसे जुड़ पाएंगे? केवल मकर संक्रांति ही अंग्रेजी तिथि के अनुसार है, जो 14 जनवरी की आता है। आज की पीढ़ी के परिवार से दूर होने का परिणाम यह है कि हम संस्कार खो रहे हैं। बड़े शहरों में एकल परिवार होने के कारण माता-पिता नौकरी पर चले जाते हैं। बच्चे क्या कर रहे हैं? कुछ पता नहीं है। जब ऊंच-नीच होती तो संयुक्त परिवार की याद आती है। नैतिक संस्कार संयुक्त परिवार में आते हैं। इसके तहत परिवार दिवस पर प्रातः जागरण से लेकर रात्रि भोजन तक क्या-क्या करना है? अवगत कराया जाता हैं। अपेक्षा की गई है कि प्रत्येक व्यक्ति पांच परिवारों तक यह गतिविध कराए। इससे संयुक्त परिवार की अवधारणा मजबूत होगी। इसमें सफलता मिल रही है।
आज क्या करें…?
प्रातः जागरण, स्नान और भोजन के समय मंत्र पढ़ना है। पशुओं को चारा खिलाएं, चीटियों को आटा। पक्षियों को दाना डालें और छत पर पानी रखें। सभी परिजन घर को स्वच्छ करें। अपने घर और मोहल्लों को विसंक्रमित करें। घर में हवन करें ताकि वातावरण शुद्ध हो। गौशाला में जाकर गौसेवा करें। अपने आसपास कोई भूख से पीड़ित है तो उसे भोजन या राशन दे। रात्रि आठ बजे भोजन मंत्र के साथ सामूहिक भोजन करें। अपने परिवार के साथ बैठें। माता-पिता का चरणवंदन करना है। व्यायाम, स्नान, तुलसी माता को जल अर्पण, गौसेवा, चींटी व पशुपक्षियों को दाना और जल देना है। अगर घर पर गाय नहीं आती है तो गौशाला जाना है और शाम को पुरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करना हैं। इसी विचार के साथ एक वार पुनः सभी देशवासियों को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।