“कभी – कभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़ें, जाना था गंगा पार, प्रभु केवट की नाव चढ़े” : बलवान सिंह

सभी को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अनन्य मित्र व भक्त निषाद राज़ जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई

बाराबंकी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान प्रभु श्री राम के प्रिय सखा महाराज गुहराज निषादराज की जयंती पर केवट समाज द्वारा बड़े ही भव्य रूप से शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा प्रसाद वितरण किया जाता है।

इस अवसर पर बलवान सिंह ने समस्त देशबासियों को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अनन्य मित्र व भक्त निषाद राज़ जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं देते हुये अपने वक्तव्य में बताया कि कभी – कभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़ें, जाना था गंगा पार, प्रभु केवट की नाव चढ़े। केवट प्रभु श्री राम का अनन्य भक्त थे। यह दिन महाकाव्य रामायण में वन प्रमुख को समर्पित है। जिन्होंने भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण को निर्वासन के दौरान आश्रय दिया और उन्हें नदी पार करने में मदद की। निषादराज ने वन के तरीकों को अपनाने में भगवान प्रभु श्री राम की मदद की। अयोध्या के राजकुमार केवट जैसे सामान्यजन का निहोरा कर रहे हैं। यह समाज की व्यवस्था की अद्भुत घटना है। राम भक्त केवट चाहते है कि वह अयोध्या के राजकुमार को छुए। उनका सान्निध्य प्राप्त करें। उनके साथ नाव में बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त करें। अपने संपूर्ण जीवन की मजूरी का फल पा जाए। प्रभु श्री राम ने केवट से नाव मांगी, वह कहने लगे – मैंने प्रभु आप का मर्म जान लिया। आप के चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं, कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। प्रभु पहले आप पांव धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़िए। उनके कहने पर प्रभु राम वह सब करते हैं, जैसा केवट चाहते थे। उसके श्रम को पूरा मान-सम्मान देते हैं। भक्त केवट राम राज्य का प्रथम नागरिक बन जाते है।

आगे कहा कि निषाद समाज आज भी इनकी पूजा करते है। वनवास के बाद श्रीराम ने अपनी पहली रात अपने मित्र निषादराज के यहां बिताई। इसलिये इतिहास की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता है और चला जाता है, धन से हीन होने पर कुछ नष्ट नही होता किंतु इतिहास और अपना प्राचीनतम गौरव नष्ट होने पर उस समाज का विनाश निश्चित है। निषाद व सिन्धुघाटी की सभ्यता विश्व में सबसे प्रमुख तीन सभ्यताओं को माना जाता है। प्रभु राम त्रेता युग की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं, इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। उसके स्थान को समाज में ऊंचा करते हैं। राम की संघर्ष और विजय यात्रा में उसके दाय को बड़प्पन देते हैं। त्रेता के संपूर्ण समाज में केवट की प्रतिष्ठा करते हैं। इसी विचार के साथ एक वार पुनः समस्त देशबासियों को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अनन्य मित्र व भक्त निषाद राज़ जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।

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