✒️ पवन कुमार श्रीमाली✒️
महा शिवरात्रि शब्द का अर्थ है शिव की महान रात। महाशिवरात्रि शिव पर्व है। हिंदू पंचाग कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार प्रतिवर्ष यह फाल्गुन मास के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 08 मार्च 2024 शुक्रवार के दिन यह त्योहार मनाया जाएगा। आओ जानते हैं इस महापर्व के 10 रोचक तथ्‍य।
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शिव प्रकटोत्सव : महाशिवरात्र‍ि हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे। इसे शिवजी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए।

जलरात्रि : प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है।

शिव विवाह उत्सव : इस दिन को शिव पार्वती के विवाह की वर्षगांठ के तौर पर भी मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन उनका माता पार्वती जी के साथ विवाह हुआ था। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी।
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. बोधोत्सव : शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। इसीलिए इस दिन रात्रि में ध्यान साधना करने का विधान भी है।

चंद्र सूर्य का मिलन : ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है।
चार प्रहर पूजा : महाशिवरात्रि पर शिवजी की जलाभिषेक, पंचामृत अभिषेक और रुद्राभिषेक करके प्रसन्न किया जाता है। शिवजी की पूजा रात्रि के 4 प्रहर में होती है।

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शिव बारात: महाशिवरात्रि पर शिवजी की पाल्की निकलती है और कई जगहों पर शिव बारात का आयोज होता है। रात में उनकी बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
निशीथ काल पूजा : जिस दिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी निशीथव्यापिनी तो उसी दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाते हैं। क्योंकि महाशिवरात्रि की मुख्य पूजा निशीथ काल में होती है। निशीथकाल की पूजा के बाद अगले दिन ही व्रत खोलना चाहिए।

शिव पाठ : महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना चाहिए। इसी के साथ ही शिव चालीसा पढ़ सकते हैं।

महिलाओं का पर्व : यह अविवाहित महिलाओं के लिए एक विशेष त्यौहार है, जो भगवान शिव की तरह एक पति की चाह रखती हैं वे इस दिन व्रत रख कर भगवान की साधना करती है। विवाहित महिलाएँ सदा सुहागन और अपने पति की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।
शिवरात्रि की कथा : महाशिवरात्रि की कथा एक साहूकार, कर्जदार शिकारी और हिरण से जुड़ी है। कर्ज नहीं चुकाने के कारण साहूकार शिकार को शिवमठ में बंदी बना लेता है। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी वहां ध्यान मग्न होकर कथा सुनता रहता है। कथा श्रवण के प्रभाव से शाम को साहूकार उसे बुलाकर कर्ज चुकाने के लिए और मौहलत दे देता है। वहां अनजाने में ही शिवपूजा कर बैठता है। शिकारी शिकार करने जाता है तो वहां रात हो जाती है और कोई शिकार नहीं मिलता है। भूखा प्यासा तालाब के किनारे लगे बिल्वपत्र के वृक्ष पर बैठकर रात गुजारने लगता है। उसे नहीं पता होता है कि वृक्ष के नीचे शिवलिंग है, जिस पर अनजाने में ही उसे बिल्वपत्र अर्पित हो जाता है। रात में उसे एक गर्भवती हिरणी नजर आती है। उसे वह मारने लगता है तभी वह हिरणी कहती है कि मैं अपने बच्चे को जन्म देकर पुन: तुम्हारे पास आ जाऊंगी। दूसरी हिरणी आती है तो वह कहती है कि मैं अपने पति के साथ रहकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी। इसी प्रकार वहां से एक तीसरी हिरणी अपने बच्चों के साथ निकली है तो वह भी कहती है कि मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर आती हूं। तीन हिरणियों को छोड़ने के बाद एक हिरण उधर से गुजरता है।

हिरण वहां किसी को ढूंढते हुए आ जाता है जब शिकारी उसे मारने लगता है तो वह कहता है कि ‘हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’ मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। इस घटनाक्रम में शिकारी से अनजाने में ही शिवलिंग की पूजा हो जाती है। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अत: अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति हुई।

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