5 फरवरी 2021 को विभागीय अधिकारियों ने बताया था कि दोनों वृक्ष करीब 250 साल से अधिक पुराने हैं। एक वृक्ष की गोलाई 17 मीटर, जबकि दूसरे की 11 मीटर मापी गई है। दुर्लभ वृक्षों के प्रति ग्रामीणों में अपार आस्था होने की वजह से लोग इनकी पूजा भी करते आ रहे हैं। इन पेड़ों की उत्पत्ति कैसे हुई, किसने इनको रोपा इसके बारे में कोई सटीक तथ्य नहीं है। वन विभाग द्वारा दोनों वृक्ष पारिजात के होने की पुष्टि की गई थी l बूजर्गों का कहना अपने बचपन से देखते आ रहे हैं कि तमाम प्रकार की बीमारियों में लोग इन पेड़ों से छाल, फल व पत्तियां ले जाकर उपचार करते आ रहे हैं। कई वैद्य इन पेड़ों से छाल निकालकर ले जाते रहे हैं। गांव में पेड़ों का अध्ययन करने के लिए कई बार इतिहासकार भी आ चुके हैं। लगातार छाल निकालने से दोनों वृक्ष कमजोर हो गए। एक वृक्ष तो गिरने की स्थिति में पहुंच चुका है।
5 फरवरी 2021 को वन क्षेत्राधिकारी, खागा सच्चिदानंद यादव का कहना था प्राचीन वृक्षों को संरक्षित किया जाएगा। ग्रामीणांचल में मिले पारिजात के दोनों वृक्ष बेहद प्राचीन हैं। बघौली गांव में भी एक पारिजात वृक्ष चिह्नित किया गया है। इनको अब नुकसान न होने पाए, इसके लिए ग्रामीणों को भी जागरूक किया जाएगा।
बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के केंद्रीय अध्यक्ष प्रवीण पाण्डेय ने बताया कि
आज 28 जनवरी 2022 तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया जिससे इन धरोहरों को संरक्षण किया जा सके l विभागीय प्रयास शून्य है l हम सबको मिलकर अपनी धरोहरों का बचाना है l
रिपोर्ट – अशोक सिंह