आजादी की लड़ाई के समय जहां गोलियों व तोपों की गरज के आगे। महान वीर योद्धाओं के पसीने छूट रहे थे इस महायुद्ध में एक योद्धा ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी कलम के दम पर अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया श्री गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार , समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी भी थे भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में उनका नाम अजर अमर है गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेजी शासन की नींद हराम कर दी थी ईस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसा वादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया अपने छोटे जीवन काल में उन्होंने उत्पीड़न व क्रुर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद किया चाहे वह नौकरशाह जमीदार पूंजीपति या उच्च जाति का कोई इंसान रहा हो गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को प्रयागराज के अतरसुइया मोहल्ले में रहने वाले कायस्थ परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम जय नारायण श्रीवास्तव था जो कि हाथ गांव फतेहपुर के मूल निवासी थे उनके पिता गरीब और धार्मिक प्रवृत्ति पर अपने उसूलों के पक्के इंसान थे वह ग्वालियर रियासत के मुंगावली के एक स्कूल में हेड मास्टर थे गणेश का बाल निकल वहीं बीटा तथा प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा भी वही हुई उनकी पढ़ाई की शुरुआत उर्दू से हुई और 1905 ईस्वी में भेलसा से उन्होंने अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की उन्होंने सन 1907में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में एंट्रेंस परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए प्रयागराज में कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया लगभग इसी समय से इनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ और प्रसिद्ध लेखक पंडित सुंदरलाल के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक पत्रिका कर्म योगी के संपादन में सहायता करने लगे आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण लगभग 1 वर्ष तक अध्ययन के बाद सन् 1908 में कानपुर के करेंसी ऑफिस में₹30 प्रति माह की नौकरी करने लगे पर एक अंग्रेज अधिकारी से कहा सुनी हो जाने के कारण नौकरी छोड़कर कानपुर के पृथ्वी नाथ हाई स्कूल में सन 19 10 तक अध्यापन का कार्य किया इसी दौरान उन्होंने सरस्वती कर्मयोगी स्वराज उर्दू तथा हितर्वार्ता जैसे प्रकाशनों में लेख लिखे
पत्रकारिता, राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन
श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का मन पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों में रमता था इसलिए वे अपने जीवन के आरंभ में ही स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े जल्द ही वे कर्मयोगी और स्वराज्य जैसे क्रांतिकारी समाचार पत्रों से जुड़े इनमें अपने लेख भी लिखा उन्होंने विद्यार्थी उपनाम अपनाया और इसी नाम से लिखने लगे कुछ समय बाद उन्होंने हिंदी पत्रकारिता जगत के अगुआ पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जिन्होंने विद्यार्थी को 1911 में अपनी साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में उप संपादक के रूप में काम करने का प्रस्ताव दिया पर विद्यार्थी जी की रुचि सैम-समियिकी और राजनीति में ज्यादा थी इसलिए उन्होंने प्रस्ताव को ठुकराते हुए हिंदी साप्ताहिक अखबार अभ्युदय मैं नौकरी करने लगे सन 1913 में विद्यार्थी जी कानपुर वापस लौट गए और एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के रूप में अपना कैरियर प्रारंभ किया उन्होंने क्रांतिकारी पत्रिका प्रताप की स्थापना की और उत्पीड़न व अन्याय खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे अपनी पत्रिका प्रताप के माध्यम से उन्होंने पीड़ित किसानों मिल मजदूर और दबे पिछले गरीबों दुखों को उजागर करते हुए उनके हक के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ने का काम किया क्रांतिकारी पत्रकारिता के कारण उन्हें बहुत सारे कष्ट झेलना पड़े सरकार ने उन पर कई मुकदमे लिखें भारी जुर्माना लगाया और कई बार गिरफ्तार कर जेल भी भेजो सन 1916 में महात्मा गांधी से उनकी पहली मुलाकात हुई जिसके बाद उन्होंने अपने आप को पूर्णता स्वाधीनता आंदोलन में समर्पित कर दिया उन्होंने 1917- 18 में होम रूल आंदोलन की अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ा मिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व किया सन 1920 में अपने अखबार प्रताप का सन 1922 में गणेश शंकर विद्यार्थी जेल से रिहा हुए पर अंग्रेजी सरकार ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया सन 1924 में उन्हें रिहा कर दिया गया पर उनका स्वास्थ्य तब तक बहुत बिगड़ चुका था फिर भी वह जी जान से कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन 1925 की तैयारी में जुट गए सन 1925 में कांग्रेस के राज्य विधानसभा चुनाव में भाग लेने के फैसले के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर से यूपी विधानसभा के लिए चुने गए और सन 1929 में त्यागपत्र दे दिया जब कांग्रेस ने विधानसभाओं को छोड़ने का फैसला लिया सन् 1929 में ही उन्हें यूपी कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और यूपी में सत्याग्रह आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई सन् 1930 में उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया इसके बाद उनकी रिहाई गांधी इरविनपैक्ट के बाद 9 मार्च 1931 को हुई और मार्च 1931 में कानपुर में भयंकर हिंदू मुस्लिम दंगे हुए जिसमें हजारों लोग मारे गए गणेश शंकर विद्यार्थी ने आतंकियों के बीच जाकर हजारों लोगों को बचाया पर खुद एक ऐसी ही हिंसक भीड़ में फंस गए जिसने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी एक ऐसा मसीहा जिसने हजारों लोगों की जान बचाई थी खुद धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ गया उनका शव अस्पताल में लाशों के मध्य पड़ा वह इतना फूल गया था कि पहचानना तक मुश्किल था के साथ 29 मार्च को उसे क्रांतिकारी का अंतिम संस्कार कर दिया गया पत्रकार शिरोमणि अमर शहीद श्री गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे निष्पक्ष पत्रकार व समाजसेवी साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी कलम से सुधार क्रांति उत्पन्न की
लेखक- पवन कुमार श्रीमाली