फतेहपुर जिले में ज्ञानी परमजीत सिंह ने बताया आज गुरुद्वारे साहिब में सिखों के आठवें गुरु गुरु हरकिशन साहिब का जन्म जुलाई सावन वदी 10 (7 वा सावन) विक्रम संवत 1713 (जुलाई 1656) को कीरतपुर साहिब में सातवे गुरु पिता गुरु हरराय व माता किशन कौर के घर में हुआ था ।। गुरु हरराय जी ने 1661 में गुरु हरकिशन साहिब जी को आठवी पातशाही के रूप में गुरु गद्दी सौपी । मात्र 05 वर्ष की अल्प आयु में सिखों के आठवें गुरु के रूप में गुरु हरकिशन साहिब जी गुरु गद्दी में विराजमान हुए ,बहुत ही कम संयवमे गुरि हरकिशन साहिब जी ने सामान्य जनता के साथ अपने मित्रतापूर्ण व्यवहार से राजधानी दिल्ली में लोगो मे लोकप्रियता हासिल की ।। इसी दौरान दिल्ली में हैजा और चेचक जैसी बीमारियों का का प्रकोप महामारी लेकर आया ,मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील था ,जात- पात व ऊच-नीच को दरनिकार करते हुए गुरु साहिब ने सभी भारतीय जनो की सेवा का अभियान चलाया ,खासकर दिल्ली में रहे वाले मुस्लिम उनकी मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं उनको बाला – पीर कहकर पुकारने लगे । जन भावना एवम परिस्थितियों को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें परेशान नही कर सका । दिन -रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरु साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने उन्हें कई दिनों तक बिस्तर से बांध दिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होंने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब लोगों ने कहा कि अब गुरु गद्दी पर कौन बैठेगा तो उन्हें अपने उत्तराधिकारी के लिए केवल ‘बाबा- बकाला’ का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरु, गुरु तेगबहादुर साहिब, जो कि पंजाब में व्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग किया था जो बाद में गुरु गद्दी पर बैठे और नवमी पादशाही बने। गुरुद्वारा साहिब का पूरा कार्यक्रम गुरुद्वारा साहिब के प्रधान सरदार पपिन्दर सिंह जी की अगुवाई में हुआ ,जिसमे पाठ की सम्पत्ति, कीर्तन व गुरु प्रसाद का वितरण हुआ ,गुरुद्वारे साहिब में उपस्थित रहे , लाभ सिंह,वरिंदर सिंह पवि, जसवीर सिंह, संतोष सिंह, सतनाम सिंह,रिंकु,जतिंदर पाल सिंह, सरनपाल सिंह,सतपाल सिंह, गुरमीत सिंह, परमिंदर सिंह सोनी ,डॉक्टर अनुराग श्रीवास्तव,महिलाओं में हरजीत कौर,हरविंदर कौर ,परमीत कौर, जसवीर कौर, खुशी, सुखमनी आदि भक्त जन उपस्थित रहे ।।