गोरखपुर: चौरी चौरा विद्रोह और असहयोग आंदोलन से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों और तस्वीरों की एक दुर्लभ प्रदर्शनी का आयोजन महुआ डाबर संग्रहालय द्वारा 3 और 4 फरवरी 2025 को सेंट एंड्रयूज पीजी कॉलेज, गोरखपुर में किया गया। यह प्रदर्शनी चौरी चौरा घटना के ऐतिहासिक संदर्भ को समझने और उस दौर की घटनाओं को प्रमाणिक दस्तावेजों के माध्यम से देखने का अवसर प्रदान करती है। सेंट एंड्रयूज पीजी कॉलेज प्राचार्य प्रोफेसर सी ओ सैमुएल ने फीता काटकर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। कल्चरल क्लब के समन्वयक प्रोफेसर जे के पांडेय ने प्रदर्शनी की रूपरेखा प्रस्तुत की। उद्घाटन समारोह के अवसर पर मुख्य नियंता प्रोफेसर सी पी गुप्ता, महुआ डाबर संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राणा, प्रोफेसर सुभाष पी डी, मार्शल आर्ट्स प्रशिक्षक योगेंद्र प्रताप, डॉ. पवन कुमार, प्रोफेसर राहुल श्रीवास्तव, आरटीआई एक्टिविस्ट अविनाश गुप्ता, प्रोफेसर कैप्टन निधि लाल, डॉ अर्चना श्रीवास्तव, समाजसेवी अरविन्द कुमार कन्नौजिया, डॉ राकेश मिश्रा, राहुल कुमार झा, मारुति नंदन चतुर्वेदी सहित महाविद्यालय के समस्त शिक्षक तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। इस प्रदर्शनी में 1922 के चौरी चौरा विद्रोह से संबंधित दुर्लभ दस्तावेज, ऐतिहासिक तस्वीरें, सरकारी रिकॉर्ड, अखबारों की रिपोर्टें, अदालती फैसले और कई अन्य महत्वपूर्ण सामग्रियां प्रदर्शित की गईं। 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को लेकर एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। इस भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद गोरखपुर पुलिस विभाग ने कराया था, जिसकी प्रति इस प्रदर्शनी में शामिल की गई। 5 फरवरी 1922 को हुए चौरी चौरा घटना के दौरान ली गई सात दुर्लभ तस्वीरों की सीरीज भी प्रदर्शनी का हिस्सा रही। इन तस्वीरों को सरदार मजीठिया के कैमरे से अलग-अलग एंगल से क्लिक किया गया था, जिनमें चौरी चौरा पुलिस स्टेशन, जले हुए शव और शवों को ले जाने वाली बैलगाड़ी स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। 7 फरवरी 1922 को चौरी चौरा कांड की सूचना गोरखपुर पुलिस सुपरिटेंडेंट एस. आर. मेयर्स ने डीआईजी, सीआईडी यूनाइटेड प्रॉविन्स को भेजी थी। इस टेलीग्राम की प्रति भी प्रदर्शनी में प्रस्तुत की गई। 4 फरवरी 1922 को हुई घटना की रिपोर्ट यूनाइटेड प्रॉविंस गजट, एक्स्ट्राऑर्डिनरी में 16 मार्च 1922 को प्रकाशित की गई थी, जिसे भी प्रदर्शनी में शामिल किया गया। 9 फरवरी 1922 को अखबार द लीडर में चौरी चौरा कांड के बाद गांवों में व्याप्त दहशत पर विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। 12 फरवरी 1922 को इसी अखबार में चौरी चौरा विद्रोह में महिलाओं की भागीदारी पर एक खास रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। 11 फरवरी 1922 को एक समाचार पत्र में थाने पर हमले के इकलौते जीवित बचे सिपाही सादिक अहमद द्वारा दी गई पूरी घटना का विवरण प्रकाशित किया गया था, जिसे प्रदर्शनी में रखा गया। 9 जनवरी 1923 को गोरखपुर जिला सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में 225 आरोपियों की सूची जारी की गई थी। इस केस में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदियों की सूची भी प्रदर्शनी में रखी गई, जिनमें बनारस, रायबरेली, लखनऊ, बरेली और आगरा जेलों में बंद कैदी शामिल थे। चौरी चौरा केस में फांसी की सजा पाए कैदियों की दया याचिकाएं भी यहां प्रदर्शित की गईं। 26 जून 1923 को ब्रिटिश काउंसिल ने चौरी चौरा अपीलों पर पुनर्विचार करते हुए 19 में से 16 आरोपियों की सजा को यथावत रखने का आदेश दिया था। इस आदेश की प्रति भी प्रदर्शनी में शामिल थी। चौरी चौरा विद्रोह के आरोपियों को कोर्ट में पेशी के दौरान ली गई सामूहिक तस्वीर भी प्रदर्शनी का हिस्सा रही। 22 सितंबर 1922 को अदालत के बाहर बेड़ियों में जकड़े लाल मोहम्मद और काजी की एक दुर्लभ तस्वीर प्रदर्शनी में विशेष आकर्षण का केंद्र बनी। चौरी चौरा विद्रोह के प्रत्यक्षदर्शी छोटकी डुमरी निवासी सीता अहीर और नौजदी पासिन का फरवरी 1989 में लिया गया चित्र भी इस प्रदर्शनी में रखा गया। इसके अलावा “एक्सेशन टु एक्सटिंक्शन – द स्टोरी ऑफ इंडियन प्रिंसेज” (डी. आर. मानकेकर) और “भिंड गजेटियर, मध्य प्रदेश शासन” जैसी दुर्लभ पुस्तकों की प्रतियां भी प्रदर्शनी में शामिल की गईं। चौरी चौरा जनविद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है, जिसके प्रभाव से महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। यह प्रदर्शनी इस ऐतिहासिक घटना के गहरे अध्ययन और शोधकर्ताओं के लिए एक अनूठा अवसर थी। इसमें प्रदर्शित दुर्लभ दस्तावेज और तस्वीरें इस घटना को समझने और उसे प्रमाणिक रूप से देखने का सशक्त माध्यम बनीं।