बने रहो लुल्ल तनख्वाह उठाओ फुल की तर्ज पर कभी-कभी जाग जाते हैं जिम्मेदार किसी मासूम की जान जाने का जिम्मेदारों को रहता है इंतजार

कब जागोगे सरकार और कितने लोगों को गंवानी पड़ेगी अपनी जान
✍️ पवन कुमार श्रीमाली✍️

फतेहपुर जनपद में जिस प्रकार ग्रामीणांचल से लेकर मुख्यालय तक में बिना पंजीयन और मानक विहीन अस्पतालों का मकड जाल फैला हुआ है हर रोज जिले के किसी कोने से खबर आती है कि किसी मासूम की जान चली गई परंतु जिम्मेदारों के कान में जूं तक नहीं रेंगती जहां एक तरफ सरकार आम जनता के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए तरह-तरह की योजनाएं चलाकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा कर आम जनता को खुशहाल देखना चाहती है परंतु भोली भाली आम जनता अस्पतालों में सुविधाओं से वंचित रह जाती है तो मजबूरी बस झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ता है नतीजा कभी-कभी तो यह आता है कि लोगों को अपनी जान तक गवानी पड़ती है और तो और जान गवाने के बाद गरीब आदमी की आवाज को चंद चांदी के सिक्के देकर दबाने का भी काम किया जाता है वहीं लोगों का मानना है कि अगर स्वास्थ्य महक में के जिम्मेदार आला अफसर अगर अपने वातानुकूलित कार्यालय से निकलकर सरकार की मंशा के अनुरूप काम करें तो ऐसे अवैध कारोबारियों वह मासूम जनता की लगातार हो रही मौत पर लगाम लगाया जा सकता है वहीं कुछ अस्पताल संचालक तो इतने शातिर माइंड हो गए हैं कि रजिस्ट्रेशन के नाम पर अगर है सिर्फ पाली क्लीनिक मगर चल रहा होता है कई बेड़ों अस्पताल और तो और कई अस्पताल संचालक तो बोर्ड टांगों और बन जाओ डॉक्टर की तर्ज पर भी चला रहे हैं नर्सिंग होम वहीं कई नर्सिंग होम संचालकों के बीच आपस में हमेशा यह चर्चा भी रहती है अगर इस तरह के शातिर माइंड वाले ज्ञान लेना है तो स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों को गुलाबी चॉकलेट का स्वाद के चटकारे लगवाना अनिवार्य है वहीं अगर बात की जाए स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों की तो किसी अस्पताल का कोई मामला अगर सुर्खियों में आता है तो जिम्मेदारों की खानापूर्ति हो जाती है बाकी सब दिन चले अढ़ाई कोस वाली कहावत स्वास्थ्य विभाग पर चरितार्थ होती है

बड़ा सवाल यह होता है कि महीने की लाखों रुपए तनख्वाह लेने वाले अधिकारी सरकार के मन मुताबिक कब खरे उतरेंगे और कब तक गवानी पड़ेगी भोली भाली जनता को अपनी जान

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