अब तो राजनीति के मंच पर या यूं कहें कि सत्ता के नुमाइंदों द्वारा भी खुले मंचों पर कहा जाने लगा है कि बंटोगे तो कटोगे जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि हर व्यक्ति को एकता के साथ रहना चाहिए और यह बात पत्रकारिता जगत में अपना सर्वस्व देने वाले पत्रकारों पर भी लागू होता है। खुले मंचों से सरकार के नुमाइंदों द्वारा कहा जाने वाला शब्द बंटोगे तो कटोगे भले ही किसी और उद्देश्य से कहा जाता रहा लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि इस नारे ने फिर से एकजुट होने की नसीहत दी है।
फतेहपुर में बीते दिन वरिष्ठ पत्रकार एवं ANI के जिला संवाददाता दिलीप सैनी जी की निर्मम हत्या और हत्या के उपरांत आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट साफ तौर से चीख – चीख कर बता रही है कि सच दिखाने वाले पत्रकारों से भ्रष्टाचार से जुड़े व्यक्ति किस तरीके से नफरत रखते हैं, पत्रकार दिलीप सैनी की हत्या साफ दर्शाती है कि पत्रकारों के प्रति दलालों, सिंडिकेट माफियाओं एवं हर वह व्यक्ति जो भ्रष्टाचार की वजह बना हुआ है आखिरकार किस तरीके से सच दिखाने वाले कलमकारों यानी पत्रकारों से नफरत रखते हैं? अब भी समय है कि हम सब आपसी मनमुटाव भूलकर एवं भेदभाव खत्म कर एकजुट होने का फैसला करते हुए एक साथ आ जाएं क्योंकि इस दौर में अवैध रूप से पैसा कमाने वाले माफिया, दलाल एवं भ्रष्टाचारी कभी भी नहीं चाहता कि कोई हमारा सच दिखाए और यदि किसी ने सच दिखाने की हिम्मत दिखाई तो ऐसे निर्लज्ज, पापी एवं कुकर्मी लोग सच दिखाने वाले पत्रकार को ही मार कर उनकी हत्या करने के लिए भी तैयार हैं। याद रखिए सच दिखाने वालों से हमेशा ही ऐसे लोग जलन रखते रहे हैं, ऐसे माफिया, दलाल एवं सिंडिकेट भ्रष्टाचारी लोग कभी भी पत्रकारों के हितैषी ना तो रहे हैं और ना ही रहेंगे। जरूरत है हमें और आपको समझने की, बुझने की और मिलकर ऐसे सिंडिकेट का मुंह तोड़ जवाब देने की… शुरुआत यहीं से समझिए कि शासन – प्रशासन का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी विभाग या संस्थान में रहा हो वह हमेशा ही सच दिखाने वाले कलमकारों का दुश्मन रहा है। दिलीप सैनी की हुई हत्या में भी एक लेखपाल का हाथ होना भी बहुत कुछ दर्शाता है। बात साफ है कि सरकारी अमला पत्रकार हितैषी रहा ही नहीं है इसकी वजह साफ है कि हर दौर में हर विभाग ने किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार एवं माफियाओं की मिलीभगत से लूट की है और उस लूट की सच को जिस किसी ने भी दिखाने की हिमायत की है या तो वह मारा गया है या फिर झूठे मुकदमों में फंसाया गया है, यह काम अब रुकना चाहिए क्योंकि इससे माफियाओं के हौसले बुलंद होते हैं और पत्रकारिता जगत में अपना सर्वस्व देने वाले पत्रकारों का अपने परिवार को देखते हुए जज्बा और जुनून भी कम होता नजर आ रहा है। आखिरकार विपक्ष के ही सही कुछ नुमाइंदों ने अब यह बात भी मानना शुरू कर ली है कि पत्रकार असुरक्षित है जिसकी सुरक्षा के प्रति कोई भी सरकार गंभीर नहीं है क्योंकि यदि सरकार गंभीर होती तो पत्रकारों के लिए देश में पत्रकार सुरक्षा कानून को लागू कर दी होती, क्योंकि बात सच है कि पत्रकारों ने हमेशा ही सही की खोज की है वह बात और है कि पत्रकारिता जैसे पाक और साफ पेशे में कुछ ऐसे लोग भी आ चुके हैं जो खबर को दबाने और छुपाने के लिए या उसको रोकने के लिए उसके एवज में किसी न किसी तरीके का सौदा भी कर लेते हैं लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बेहद ही कम है और हकीकत से रूबरू कराने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है तो जिसमें तादात ज्यादा उसकी होगी बात ज्यादा। आज समाज में ग्राम पंचायत की हकीकत बताने वाले पत्रकार को ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान एवं उससे कहीं ज्यादा पंचायत सचिव ही सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है फिर चाहे वह डील करने की बात करता है, बात न बनने पर हाथ पैर तोड़ देने या फिर जान से मार देने की तैयारी करता है यदि इसमें भी असफल हुआ तो फर्जी मुकदमे यानी झूठे मुकदमे में फसाने का षड्यंत्र रचता है। यही क्रम आज के दौर में सिर्फ पंचायती राज ही नहीं बल्कि प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार से संचालित होने वाले सभी विभागों की यही हकीकत है। तो आइए इस लड़ाई को मिलकर लड़ते हैं, एकजुट होकर एक मंच पर खड़े होते हैं, वरिष्ठ – कनिष्ठ जूनियर – सीनियर और छोटा – बड़ा इन बातों से दूर जाकर कलमकार और सच के प्रति आईना दिखाने वाले पत्रकार एक साथ हो जाएं और बंटोगे तो कटोगे जैसे नारों पर विचार एवं मंथन कर एकजुटता दिखाना पड़ेगा क्योंकि अब भी नहीं जागे तो अगला नंबर हम में से ही किसी और पत्रकार का होगा जिसे अपनी जान तक गंवानी पड़ सकती है।
जय हिंद, जय भारत, जय पत्रकार समाज…
आइए एक साथ आकर देश में पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग करते हुए पत्रकार साथी को न्याय दिलाने का बीड़ा उठाते हैं और अपनी लेखनी का भरपूर प्रयोग करते हुए शासन – सत्ता को अपनी मांगों को मांगने पर विवश करते है क्योंकि हमारी कलमाें में वो ताकत और कूवत है जो किसी अन्य हथियार में नहीं है।

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