डलहौजी तथा पूर्ववर्ती अंग्रेज   प्रशासकों की नीति से जनता, राजाओं ,नवाबों, ताल्लुकेदारों और जमींदारों में तीव्र आक्रोश व्याप्त था। राजाओं के राज्य, ताल्लुकेदारों के ताल्लुके किसी न किसी बहाने छीने जा रहे थे। बंदोबस्त के बहाने अवध के राजा बेनी माधव सिंह शंकरगढ़ की सत्ता 223 ग्रामों से घटकर 119 ग्रामों तक सीमित कर दी गई थी। ठाकुर दरियाव सिंह के ताल्लुके भी कई ग्राम बंदोबस्त के समय छीन कर मुजफ्फर हुसैन खान के नाम कर दिए गए थे ।जनता ऋणभार से दबी जा रही थी। उधर सैनिकों में भी चर्बी लगी कारतूस के प्रयोग से धार्मिक दुरभिसंधि की धारणा बलवती होती जा रही थी। इन सारे घटना चक्र की  प्रतिक्रियाओं  के फलस्वरुप विदेशी सत्ता को समाप्त करने की योजनाएं बनने लगी। 29 मार्च 1857 को बंगाल के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने गाय की चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। फलस्वरुप 8 अप्रैल 1857 को उन्हें इस विद्रोह के लिए फांसी दे दी गई । विद्रोह की यह चिंगारी 10 मई 1857 को मेरठ से संगठित सैनिक विद्रोह के रूप में उभरी और सत्तावनी क्रांति के आगाज हो गया विद्रोह के प्रमुख केन्द्रों में कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ ,बरेली, झांसी ग्वालियर और फतेहपुर शामिल था। कानपुर में नाना साहब, तात्या टोपे ,इलाहाबाद से लियाकत अली ,लखनऊ से बेगम हजरत महल, बरेली से खान बहादुर, झांसी से रानी लक्ष्मीबाई ,फतेहपुर से ठाकुर दरियाव सिंह व ठाकुर जोधा सिंह ने क्रांति की मसाल जलाई।
जनपद फतेहपुर के 1857 की क्रांति के महानायक अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म 1795 ईस्वी में खागा गढ़ी के प्रतिष्ठित क्षत्रिय ताल्लुकेदार ठाकुर मर्दन सिंह के यहां हुआ।ठाकुर मर्दन सिंह के दो पुत्र ठाकुर दरियाव सिंह व ठाकुर निर्मल सिंह थे ।ठाकुर दरियाव सिंह की पत्नी का नाम सुगंधा था जिनसे दो पुत्र ठाकुर सुजान सिंह व ठाकुर देव सिंह हुए।
जनपद फतेहपुर 10 नवंबर 1801 ई तक अंग्रेजों द्वारा शासित रहा इसके बाद खागा ताल्लुका 1802 से ठाकुर दरियाव सिंह के पूर्वजों के नाम रहा और ताल्लुकेदार रहे ।10 मई1857 को सत्तावनी क्रांति की घोषणा के पूर्व ठाकुर दरियाव सिंह  मई और जून 1857 ई के मध्य अपने भांजे  चहलारी (बहराइच )नरेश राजा बलभद्र सिंह के यहां युद्ध में भाग लेने चले गए थे और वहां से लौट ही ना पाए थे कि 4 जून को कानपुर व 7 जून को इलाहाबाद में स्वतंत्रता की घोषणा हो चुकी थी। कानपुर और इलाहाबाद के स्वतंत्र होने और क्रांति की सफलता का समाचार आग की भाँति फतेहपुर में भी फैल चुका था ।

8 जून 1857 का पावन दिवस जिस दिन फतेहपुर जनपद का एक भूभाग खागा अंग्रेजों से मुक्त हुआ खागा के आसपास की जनता और विद्रोही सैनिकों ने ठाकुर सुजान सिंह के नेतृत्व में खागा तहसील के राजकोष पर अपना अधिकार कर लिया तत्कालीन तहसीलदार पंडित रामनारायण ने नत्थू बेग चपरासी और नूर मोहम्मद मिरधरा के द्वारा ठाकुर सुजान सिंह से सरकारी कोष न लूटने की प्रार्थना की किंतु प्रार्थना ठुकराते हुए रेलवे इंजीनियरों तथा अन्य अंग्रेजी अधिकारियों के बंगले तथा सरकारी कार्यालय जला दिए गए और समस्त सरकारी सामान पर अधिकार कर लिया गया इस विजय अभियान में खागा के आसपास के ग्रामों की जनता ने पूरा सहयोग किया तथा ठाकुर दरियाव सिंह के सहोदर ठाकुर निर्मल सिंह पुत्र ठाकुर देवी सिंह और सुजान सिंह, पारिवारिक सदस्य ठाकुर रघुनाथ सिंह, ठाकुर बख्तावर सिंह, ठाकुर बहादुर सिंह, ठाकुर रणजीत सिंह, ठाकुर उजागर सिंह, ठाकुर दीना सिंह, ठाकुर ज्ञानी सिंह, ठाकुर पोखम सिंह खागा के साधारण जन बैजू ,सुक्खन कोरी , ननका, सुखवा ,मेहमान, गंगादीन, नारायण ,लाल मोहम्मद यासीन, मियां बख्श तथा सरसई के ठाकुर ईश्वरी सिंह ठाकुर खुशहाल सिंह ,हिम्मत सिंह, मथुरा,नन्हे आदि व्यक्तियों ने प्रमुख रूप से अपना योगदान दिया। तत्कालीन थानेदार खागा खुर्शीद अली द्वारा 4 व 5 फरवरी 1858 को दर्ज की गई रिपोर्ट में उपरोक्त तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है।
खागा के अधिकार के बाद ठाकुर दरियाव सिंह व उनके पुत्र सुजान सिंह ने ठाकुर शिवदयाल सिंह जमरावा, ठाकुर जोधा सिंह अटैया रसूलपुर व तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खा के सहयोग से 9 जून को फतेहपुर को चारों ओर से घेर लिया। अंग्रेज कलेक्टर मिस्टर जे. डब्ल्यू. शेरर और अन्य अधिकारी रात को ही यमुना पार कर बांदा की ओर भाग गए। अंग्रेज जज मिस्टर टक्कर बाबा गयादीन दुबे कोराई से सहायता मांगने गया किंतु उसे कोई सहायता ना मिली उसी रात मिस्टर ठक्कर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। कहा जाता है कि मिस्टर टक्कर ने यूनियन जैक फहराने वाले गुंबद में बाबा गया दिन दुबे का नाम विश्वासघाती के रूप में लिखा था इसी आधार पर बाद में देशभक्त बाबा गयादीन दुबे की गिरफ्तारी हुई थी ।10 जून 1857 ई को ठाकुर सुजान सिंह ने अपने सैनिकों और साथियों के साथ जिला जेल पहुंचकर बंदियों को मुक्त कराया तथा कचहरी और राजकोष पर अधिकार कर लिया।इस प्रकार संपूर्ण फतेहपुर अंग्रेजों से मुक्त हुआ तथा तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खा को आजाद फतेहपुर का कलेक्टर बनाया गया। संपूर्ण फतेहपुर 32 दिनों तक अंग्रेजों के अधिकार से मुक्त रहा।
12 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने पुनः फतेहपुर में अधिकार कर लिया और कलेक्टर हिकमत उल्ला खा का सर कलम कर फतेहपुर कोतवाली में लटका दिया।
5 जनवरी 1858 को ठाकुर दरियाव सिंह अपने पुत्र सुजान सिंह के साथ किसी कार्य हेतु खागा आए हुए थे किसी मुखबिर की सूचना पर भोजन करते समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया जिसमें ठाकुर दरियाव सिंह ,पुत्र सुजान सिंह, भाई निर्मल सिंह, भतीजे बख्तावर सिंह,रघुनाथ सिंह, तुरंग सिंह पर 9 आरोप लगाए गए। एक माह तक न्याय का झूठा स्वांग रच कर 6 मार्च 1858 को जिला जेल फतेहपुर में फांसी दे दी गई।भारत माता के अमर वीर सपूत देश के लिए बलिदान हो गए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here