आगरा। देश में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए सोमवार को लागू हो गया। इस नये कानून को लेकर अधिसूचना जारी कर दी गई। इसके जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता लेने में आसानी होगी।
इस सन्दर्भ में वरिष्ठ समाजसेवी डॉ उमेश शर्मा ने सभी से अपील करते हुए बताया कि सीएए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद इस बात का भ्रम फैलाया जा रहा है कि इससे लोगों की नागरिकता चली जाएगी लेकिन सच तो यह हैं कि अल्पसंख्यकों या किसी अन्य व्यक्ति को डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। सीएए केवल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को अधिकार और नागरिकता देने के लिए है। सीएए किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, बल्कि ये नागरिकता देने के लिए है। उन्होंने कहा कि पड़ोसी मुल्क में रहने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन या पारसी परिवार के साथ प्रताड़ना के शिकार हुए लोगों को नागरिकता देने का कार्य मोदी सरकार ने किया है और यह नागरिकता देने का कानून है और इससे भारत के किसी भी नागरिक की नागरिकता नहीं जाएगी। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, भारत के तीन पड़ोसी देशों से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का अधिकार देने का कानून है। नागरिकता संशोधन कानून के सन्दर्भ में कई गलतफहमियां फैली थीं। यह नागरिकता देने का कानून है, सीएए से किसी भी भारतीय नागरिक के नागरिकता नहीं जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। यह कानून केवल उन लोगों के लिए है जिन्हें वर्षों से उत्पीड़न सहना पड़ा और जिनके पास दुनिया में भारत के अलावा और कोई जगह नहीं है। कोरोना के कारण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में देरी हुई लेकिन अब इसे लागू कर दिया गया है।
उन्होंने आगे कहा कि जब अफगानिस्तान में गुरु ग्रंथ साहब और हमारे सिख भाइयों पर खतरा था तब मोदीजी ने एक बार नहीं बल्कि तीन बार विशेष विमान भेज कर उन्हें सब कुशल भारत लाया। आखिर भारत में रहने वाले देश विरोधी चाहते क्या है? कि पड़ोसी मुल्कों से प्रताड़ित होकर भारत आए दलित और अन्य पिछड़ी जाति के लोगों को नागरिकता ना दी जाए? इनकी यहां दो – दो तीन तीन पीढ़ियां बीत गई, फिर भी नागरिकता ना मिले? जितने भी लोग अखंड भारत का हिस्सा थे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी। हमारे देश का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था। जो हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक वहां रह गए उनके बारे में नेहरू जी ने कहा था कि उन्हें वहां संरक्षण मिलेगा लेकिन कांग्रेस ने 70 वर्षों में उन्हें कोई संरक्षण नहीं दिलाया। जो काम कांग्रेस 70 वर्षों में नहीं कर पाई।1947 में धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ था। उस वक्त कांग्रेस नेताओं ने कहा था कि पलायन कर चुके लोग कभी भी वापस आ सकते हैं लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से कांग्रेस ने कभी अपना वादा पूरा नहीं किया लेकिन आज पीएम मोदी ने इसे पूरा किया है। जो लोग अखंड भारत का हिस्सा थे और जिन पर अत्याचार किया गया, उन्हें भारत में शरण दी जानी चाहिए और यह हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। जब बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान में 23% हिंदू और सिख थे, लेकिन अब उनमें से केवल 3.7% ही बचे हैं. वे सब कहां चले गये? वे यहां नहीं लौटे हैं। उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया, उनका अपमान किया गया, उन्हें दोयम दर्जे का दर्जा दिया गया। वे कहां जाएंगे? क्या सरकार उनके बारे में नहीं सोचेगी? अगर हम सिर्फ बांग्लादेश की बात करें तो 1951 में यहां हिंदू आबादी 22 फीसदी थी, लेकिन आज ये घटकर 10 फीसदी पर पहुंच गई है। वे लोग कहां गए? लेकिन आज़ अपने ही देश के कुछ सत्ता के लालची लोग वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। वह विभाजन की पृष्ठभूमि भूल गए हैं जबकि उन्हें शरणार्थी परिवारों से मिलना चाहिए और उनका दर्द समझना चाहिए।