बाराबंकी जीवन जीते हुए तमाम बातें हैं जो हम किसी मित्र रिश्तेदार आदि से नही कह सकते हैं लेकिन परमात्मा हमें अपने बच्चे की तरह प्यार करता है इसलिए वह हमें अपने समीप बैठकर हमारे एक एक अवगुणों रूपी कांटो और जहर को स्वयं पर ले लेता है और हमें सुगंधित पुष्प की तरह जीने की प्रेरणा देता है
किन्तु हम उसके पर्याय को कभी कभी ठीक से समझ नही पाते और अर्थ का अनर्थ समझ बैठते हैं हमें लगता है परमात्मा को स्थूल रूप में बेल पत्र भांग धतूरा दूध आदि प्रिय है आइए आज इनका विशेष आध्यात्मिक रहस्य को समझते हुए सार्थक शिवरात्रि मनाएं

बेल पत्र
बेल पत्र सृष्टि की रचना पालना और विनाश रूपी सृष्टि चक्र का ज्ञान धारण करना और ड्रामा में जो कुछ हो रहा है उसे बहुत हल्के होकर सहजता से जीवन जीना है बोझ नहीं रखना है

दूध पानी का मिश्रण
स्नेह भी मिलावट पूर्ण हो गई है
हमारे अन्दर प्रेम के साथ साथ ईर्ष्या और मोह रूपी मिलावट छिपी होती है इसे पहचानकर शुद्ध बनना

गन्ने की गांठ

अपनो के प्रति किसी प्रकार की मन में गांठ है तो उसे पहचानना और इस बुराई को समाप्त करना अर्थात शिव को अर्पण कर देना

आक धतूरा

दूसरो के लिए हमारे अन्दर में कभी कभी पुष्प रूप में छिपे ज़हर और स्थिति ज्यादा विपरीत होने पर कंटीले फल के रूप में चुभने वाले बोल रूपी विकार को पहचान कर प्रभु को अर्पित करना

भांग

नाम, मान ,शान, पद, प्रतिष्ठा ,सौंदर्यता आदि के नशे को पहचानना और उसे भी शिव पर अर्पित करके शिव समान बनने का प्रयास करना

उपरोक्त सभी बुराइयां हम सबमें किसी न किसी तरह व्याप्त हैं किसी में कोई बुराई किसी में कोई बुराई , कम या ज्यादा हो सकता है किन्तु नहीं हो यह नहीं हो सकता , तमाम साधु संतों यहां तक कि साधारण व्यक्ति के भी उदाहरण हैं जिन्होंने जीवन जीते गृहस्थ एवं कार्यभार संभालते हुए भी बुराइयों पर विजय प्राप्त की है

जब हम विषय विकारों में घिरे होते हैं तब यही विकार हमें डराते हैं किंतु जब हम विकारों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तब यही विकार हमारी रक्षा करते हैं शिव के गले का नाग हार शिव के साथी भूत प्रेत कीट पतंगे सर्प बिच्छू इसी बात का प्रतीक हैं

शिव को अपने से बहुत दूर नहीं अपने साथ साथ सदैव रखना है यह सदैव उसकी याद में रहने से संभव है शिव से मांगना कुछ नहीं है क्योंकि वह हमारा परम पिता है जैसे पिता की हर संपत्ति पर बच्चे का अधिकार होता है वह मांगता नहीं है गिड़गिड़ाता नही है उसके लिए आवश्यक वस्तुएं पिता सुलभ ही उसे प्राप्त कराते हैं उसी प्रकार जब हम परम पिता से अपना कनेक्शन रखते हैं तो यह हमें ब्रह्मांड से कनेक्ट कर देता है प्रकृति से जोड़े रखता है जो इस निश्चय में जीते हैं जिन्होंने इसका अनुभव किया है वह जानते हैं कि कुछ नहीं होते हुए भी उन्हें सब कुछ होने का बोध रहता है सांसारिक जीवन जीते हुए जो भगवान के नशे में रहते हैं उनके भी अनुभव हैं कि उन्हें जब जितनी आवश्यकता होती है वह स्वतः उन्हें प्राप्त होती है शिव के माथे पर चंद्रमा और जटा में गंगा कंठ में विष वस्त्र के रूप में बाघाम्बर ,शरीर पर भस्म ,कैलाश पर निवास,हाथ में डमरू,त्रिशूल आदि इन सबके अनूठे आध्यात्मिक अर्थ हैं जिन्हें समझते हुए
हमें इस शिवरात्रि पर्व पर यह निश्चय करना है कि स्वयं के भीतर अपना अवलोकन करके पांच विकारों में से पहचानकर एक एक बुराई को शिव परमात्मा के समक्ष रख देना है उन्हें अर्पण कर देना है और कोशिश करना है कि विपरीत परस्थिति आने पर भी हम अपनी स्व स्थिति में बने रहें

!! ॐ नमः शिवाय!!

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