क्रासर – आरटीआई में खुलासा: सड़क का बजट, दलालों की बिल्डिंगों की बढ़ा रहा शाईनिंग
घोटाले को छिपाने के लिए अभी तक विभाग नहीं दे रहा था आरटीआई का जवाब : इं. प्रवीण
संवाददाता महेश प्रजापति असोथर फतेहपुर
फतेहपुर/जिले का पीडब्ल्यूडी विभाग जरा सी भी जिम्मेदारी से काम करता तो शायद जनपद की कोई भी सड़क इतनी टूटी-फूटी और विखरी हुई नहीं होती। आरटीआई से मिले इस जवाब से साफ साबित होता है कि सरकार हर क्षेत्र की प्रत्येक सड़क के लिए बजट दे रही है, लेकिन वह बजट इन भ्रष्ट अधिकारियों की जेब से गुजरता हुआ दलालों की जेब में जा रहा है। आरटीआई में खुलासे के मुताबिक कागज पर सड़कों का निर्माण दिखाकर लगभग 90 करोड़ रुपये का गोलमाल किया गया।
विजयीपुर-गाजीपुर सत्याग्रह के अगुआ रहे ई. प्रवीण पाण्डेय ने बताया कि पिछले तीन माह से लोगों ने हजारों की संख्या में आरटीआई और आईजीआरएस किया जिनका जवाब देने से विभाग हमेशा बचता रहा क्योंकि विभाग की पोल खुलने वाली थी। हजारों की संख्या पूरी करने के बाद प्रथम अपील करने के बाद मुख्यमंत्री द्वारा बजट पास करने के बाद विभाग ने आरटीआई का जवाब दिया। आरटीआई का जवाब अभी इसीलिए नहीं दे रहा है। आज भी लोग लोगों को लग रहा है रोड को बनना ही था। अक्टूबर से जनवरी बार लखनऊ से वापस पीडब्ल्यूडी विभाग के ऑफिस में जाकर देखा जा सकता है। इस सड़क को बजट न मिलने का सबसे बड़ा कारण यही रहा कि सरकार यह जानना चाहती थी कि जो अभी तक पैसा दिया गया वह खर्च हुआ या नहीं और 30 करोड़ रूपये सरकार के देने के बाद किस बेस पर 102 करोड़ रूपये या 90 करोड़ रूपये इनको दे देती। आखिर इन्होंने इस 30 करोड़ से किया क्या है? एक भी ट्रैक मिट्टी इन्होंने खरीद के नहीं डाली। अभी तक इस रोड में गरीब किसानों के खेत से मिट्टी उठाकर के इन्होंने शोल्डर की भराई की है।
पांडेय ने बताया कि कोई भी ऐसी बड़ी मशीनरी का उपयोग इन्होंने नहीं किया जिसका मासिक किराया दिया हो। 80 से 90 हजार रूपये माह के किराए की जेसीबी लगा करके इन्होंने तीन माह में किसानों के खेत की मिट्टी उठाकर के वहीं की वहीं डाल दी है।
कितना पैसा खर्च किया? उनका कहना है कि सरकार से मिले 30 करोड़ में अगर यह चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे। लोगों के पैदल चलने लायक तो रास्ता रहता। इस सड़क का दर्द इस सड़क से गुजरने वाले से पूछिए। इस सड़क के बनने में भ्रष्ट तो अधिकारी ही रहे। हमारे बीच के हमारे अपने ही रहे। जिन्होंने इन अधिकारियों को मनमानी करने दिया और अपना हिस्सा बीच बीच लेते रहे।