मुनाफे के खेल में दमा, कैंसर की दी जा रही सौगात
संविधान रक्षक समाचार सेवा
फतेहपुर
सब्जियों की ग्रोथ बढ़ाने को आक्सीटोसिन इंजेक्शन का प्रयोग किया जा रहा है। इंजेक्शन लगी सब्जियां, इंसानी सेहत पर सीधा हमला बोल रही हैं। सब्जी उत्पादक किसान की अधिक कमाने की लालसा के कारण हरी सब्जी खिलाने के नाम पर जनता को दमा, कैंसर व चर्म रोग की सौगात दी जा रही है।
बिन्दकी तहसील क्षेत्र को सब्जी बेल्ट के रूप में भी जाना जाता है। क्षेत्रीय किसान इस प्रतिबंधित इंजेक्शन का प्रयोग, जनता की सेहत की परवाह किए बगैर करते देखे जा रहे हैं। शाहजहांपुर, कोरसम, पारादान, बुढ़वा गांव के किसान हरेक तरह की सब्जियां खेतों पर उगा रहे हैं। आलू, टमाटर, मिर्च, गोभी, लौकी, कदुआ, भिंडी व तरोई जैसी सब्जियों में इस प्रतिबंधित दवा को जिब्रेलिक एसिड नामक दवा अल्कोहल और ऑक्सिटोन को मिलाकर अधिक उत्पाद के नाम पर प्रयोग किया जा रहा है। यह दवा मानव जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक बनती जा रही है। चर्म रोग, दमा और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है।
इनसेट-
प्रतिबंध, फिर भी बढ़ गई मात्रा
फतेहपुर। इसे प्रशासनिक विफलता कहा जाए या फिर मिलीभगत। जो इंजेक्शन पहले एक छोटी सी कांच की शीशी में दो से तीन एमएम की मात्रा में उपलब्ध रहता था। वही आज 40 से 80 ग्राम तक के सफेद कलर की सीसी पैकिंग में उपलब्ध है। वह भी बिना नाम और लेबल की और तो और इस दवा पर एक्सपायरी व मैन्युफैक्च्यूरिंग का भी हवाला नहीं है। कोई यह पूछने वाला नहीं है कि आखिर प्रतिबंधित होने के बावजूद इतनी अधिक मात्रा में इसकी आपूर्ति कैसे हो रही हैै।
इनसेट-
मवेशियों में बांझपन पर लगा था बैन
फतेहपुर। इस इंजेक्शन का प्रयोग मवेशी पालक करते थे। मवेशियों के बढ़ते बांझपन और मनुष्यों के जीवन पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया गया लेकिन इसका प्रयोग बंद नहीं हो सका। रोजाना के खाने वाली सब्जियों में छिड़काव के रूप में इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। खाद और बीज की दुकान वाले ज्यादा उत्पाद की बात करने के साथ जिब्रेलिक एसिड के साथ ऑक्सीटॉसिन का उपयोग करने की सलाह दे रहे है। अगर इस पर वक्त रहते कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले दिनों में इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।
कोट-
ऑक्सीटोसिन एक ड्रग्स है। ड्रग्स का ज्यादा उपयोग मानव के लिए हानिकारक है। यह दवा वसा में जा करके जमा होती है, जो आगे चलकर कैंसर का रूप कैंसर का रूप ले लेती है। मुर्गी पालन और कृषि कार्य में इसके बढ़ता उपयोग जा रहा है- डॉ. केके पांडेय, फिजीशियन, सदर अस्पताल।