; ढांचा गिराने वाले चंद्रपाल से जानें उस दिन की कहानी
भदस्याना के छह फीट के नौजवान 30 वर्षीय (उस समय) चंद्रपाल आर्य। अपने साथियों की मदद से बैरीकेडिंग को कूदकर आगे बढ़े और पांच मिनट में वह ढांचे की दूसरी गुंबद पर चढ़ गए। बिना पानी पिए दोपहर तक ढांचे पर हथौड़ा चलाया उसके बाद नींव की खोदाई करने वाले कारसेवकों के साथ जुट गए। चंद्रपाल पहली कारसेवा में भी गए थे…

अयोध्या; दर्ज-ए-अतीत: हजारों की भीड़… राम मंदिर का संकल्प, घंटों तक चले हथौड़े; ढांचा गिराने वाले चंद्रपाल से जानें उस दिन की कहानी

छह दिसंबर 1992 का 11 बजे का समय। हजारों की भीड़। एक-दूसरे को पीछे धकेलकर हर कोई ढांचे तक पहुंचने को आतुर। माइक से बार-बार शांति व संयम के शांति व संयम बनाए रखने के निर्देश दिए जा रहे। कारसेवक लगातार इन निर्देशों को अनसुना कर कर रहे थे। उन्‍हें सिर्फ याद थी सरयू में खड़े होकर ली गई सौगंध और और प्रभु श्रीराम की सेवा में समर्पण।

जोश के साथ सिर्फ जयश्रीराम गूंज रहा था। इन्‍हीं कारसेवकों में शामिल थे, भदस्याना के छह फीट के नौजवान 30 वर्षीय (उस समय) चंद्रपाल आर्य। अपने साथियों की मदद से बैरीकेडिंग को कूदकर आगे बढ़े और पांच मिनट में वह ढांचे की दूसरी गुंबद पर चढ़ गए।

बिना पानी पिए दोपहर तक ढांचे पर हथौड़ा चलाया, उसके बाद नींव की खोदाई करने वाले कारसेवकों के साथ जुट गए। अयोध्या में नव-निर्मित श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का समय जैसे-जैसे पास आ रहा है, वैसे ही उनकी स्मृतियां ताजा होने लगी हैं। सबसे ज्यादा स्मृति जुड़ी हुई हैं, ढांचे को गिराए जाने की।

घर से आरती करके रामकाज को हुए थे रवाना
चंद्रपाल पहली कारसेवा में भी गए थे, उसके अनुभवों की टीस ने ही 1992 की दूसरी कारसेवा में जाने की इच्‍छा को और प्रबल किया था। बताते हैं कि 1992 में भदस्याना और बहादुरगढ़ से 22 युवाओं का दल अयोध्या जाने को तैयार हुआ। उस समय घर परिवार के साथ ही ग्रामीणों में भी भारी उत्साह था।

लोगों ने जहां उनको ढोल के साथ पूरे गांव की परिक्रमा कराकर ढांचा गिराने का दायित्व सौंपा था। महिलाओं ने आरती करके तिलक लगाकर संकल्प सिद्धि और सुरक्षा की कामना की थी। उसके बाद यह दल चार दिसंबर को अयोध्या पहुंच गया।

छह दिसंबर को ढांचा गिराने के दौरान भारी भीड़ व धक्का-मुक्की के चलते उनके दल के सदस्य बिछड़ गए। चंद्रपाल बताते हैं कि हमारे साथ के तीन युवक बैरीकेडिंग तक पहुंच गए। हम भी बैरीकेडिंग कूदकर गुंबद पर चढ़ गए।

गुंबद पर नहीं हो रहा था हथौड़े का असर
करीब तीन घंटे तक अपने साथियों व अन्य कारसेवकों के साथ में दो नंबर की गुंबद पर हथौड़ा बजाया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। गुंबद नहीं टूट रही थी। बकौल चंद्रपाल गुंबद की नींव खोदने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खोदाई को कुछ हाथ में नहीं था तो हाथों से ही मिट्टी को बाहर फेंक रहे थे। पूस की ठंड में हाथों में से मिट्टी हटाते हुए हाथ सुन्‍न पड़ गए, खरौंचें आईं, पर रामधुन में इसकी किसे सुध थी।

रामलला की सौगंध लेकर लौटे थे
ढांचा गिरा दिए जाने के बाद कारसेवकों में गजब का उत्साह था। अब राममंदिर बनने और तंबू से रामलला के बाहर आने का सपना साकार होता दिखने लगा था। तब इस दल के पांच युवाओं ने अयोध्या में सौगंध ली थी। उन्होंने राममंदिर का निर्माण देखने को अपने जीवन की अंतिम इच्छा के रूप में लिया था।

इस टीम के सदस्यों चंद्रपाल आर्य के साथ ही ईश्वर प्रसाद, ललित चौहान, शुभनेस तोमर, दिनेश तोमर, लाला प्रमोद, लहड़रा के रामफल सिंह चौहान के परिवारों में 1992 से दीवाली पर पक्का खाना नहीं बनता है। सभी ने संकल्प लिया था कि राम का काम जिस दिन पूरा होगा, उसी दिन घर में पक्का खाना तैयार होगा। अब 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा वाले दिन इन सभी परिवारों में पकवान बनेगा। खुशियों के दीप जलेंगे। और पांचों परिवार अयोध्या जी रामलला के दर्शन करने जाएंगे।

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