महेश कुमार संवाददाता असोथर फतेहपुर
असोथर फतेहपुर देश में तालाबों का अस्तित्व तब से है जब से मनुष्य का अस्तित्व है। तालाब मनुष्य के लिए खेती किसानी के लिए बहुत ही उत्तम साधन है व भूमि जल स्तर को बनाए रखने के लिए भी तालाब की बहुत महत्वपूर्ण उपयोगिता है। आज से 25 – 30 साल पहले तालाब गांव की संपत्ति हुआ करते थे। गांव वाले बरसात के पहले तालाब से मिट्टी निकालते थे और उस मिट्टी का प्रयोग अपने घरो में करते थे जिससे तालाब की गहराई हो जाती थी और मनुष्य की जो आवश्यकता है मिट्टी की वह भी पूरी हो जाती थी, फिर बरसात आने पर चारों तरफ से बरसात का पानी तालाब में आता था जिससे तालाब का पानी धीरे-धीरे नीचे पृथ्वी के गर्भ में जाता था जिससे हमारा जलस्तर बहुत अच्छा रहता था और वर्ष भर खेती किसानी के लिए प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध रहता था। जलस्तर बढ़िया हो जाने के बाद भी तालाब में पानी रहता था जिससे हमारे गांव के पालतू जानवर उन तालाबों से पानी पीते थे ,उन तालाबों में नहाते थे गांव के बच्चे भी तालाब में तैराकी करते थे। एक प्रकार से तालाब मनोरंजन का साधन भी था और उसकी बड़ी उपयोगिता थी ।गांव में तालाब में पंपिंग सेट लगाकर भी खेत की सिंचाई की जाती थी।
फिर एक समय ऐसा आया सरकार की कुदृष्टि तालाबों पर पड़ी और तालाब सरकारी संपत्ति हो गए,तालाब खुदाई व सुंदरीकरण के नाम पर उन तालाबों पर मनरेगा से किनारे की मिट्टी निकाल कर के उनकी ऊंची ऊंची मेड़बंदी की जाने लगी।मनरेगा से चारों तरफ से तालाब की मेड़बंदी की जाती है, सिर्फ दिखावे के लिए एक तरफ पाइप लगाया जाता है कि बरसात का पानी इस पाइप के माध्यम से तालाब में जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं है और तालाब की गहराई नहीं बढ़ाई जाती है और मेड़ बंदी से चारों तरफ का पानी अंदर नहीं आ पाता है, जिससे हमारा जलस्तर नीचे जा रहा है। अप्रैल मई के माह में जल स्तर इतना नीचे हो जाता है कि खेत सिंचाई के लिए पंपिंग सेट भी पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं दे पाते हैं । गांव वाले अपनी आवश्यकतानुसार तालाब से मिट्टी भी नहीं ले सकते हैं। पशु पक्षियों के पीने के लिए कहीं पानी नहीं है ,उसमें वह नहा भी नहीं सकते हैं गांव के बच्चे तालाब में तैराकी सीखते थे वह भी नहीं जा सकते हैं ।इस योजना से सरकार का लाखों रुपया तालाबों में बेकार हो रहा है ,जो एकदम निरर्थक है, ठेकेदार व अधिकारी मालामाल हो रहे हैं और तालाब की जो उपयोगिता है वह एकदम नष्ट हो गई है। एक प्रकार से प्रकृति के साथ बहुत ही बड़ा अन्याय हो रहा है ।जिम्मेदार कौन है? सरकारी अफसर ;जो योजना बनाते हैं ,वह इस प्रकार से बनाते हैं कि उनकी जेब गर्म होती रहे उनको कोई समझ नहीं है कि किस की क्या उपयोगिता है और किस चीज का क्या स्वरूप होना चाहिए ।
धीरे धीरे तालाब में सिंघाड़ा उत्पन्न करने वाले किसान भी बेरोजगार हो रहे हैं और उनके सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो रही है ।सरकार तैराकी को बढ़ावा देने के लिए स्विमिंग पूल बनवाती है जो अमीरों के काम आता है, गरीबों को प्रकृति से मिला गांव में तालाब तो वह भी उनसे छीन रही है। यह सब समझ से बाहर है कि सरकार प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ कर रही है और गरीबों को भी बेरोजगार करने पर उतारू है । _ दूसरा सबसे महत्वपूर्ण विषय है वृक्षारोपण ।वृक्षारोपण के नाम पर जिस प्रकार से खिलवाड़ होता है कि एक वृक्ष को लगाते हैं 10 लोग फोटो खींचाते हैं। अभियान चलाकर वृक्षारोपण कर दिया जाता है किंतु रोपे गए वृक्षों में कितनों की परवरिश कर तैयार किए गए, इसका कोई सरकारी आंकड़ा भी नहीं है।ऐसे ऐसे वृक्ष लगाए जाते हैं जिनका प्रकृति में कोई योगदान नहीं है ।एक प्रकार से वह प्रकृति के विरोधी माने जाते हैं ऐसे पेड़ लगाए जाते हैं। वृक्षारोपण में नीम, बरगद, पीपल, पाकड़, जामुन, गूलर, इमली आदि पौधे वृक्षारोपण अभियान में शामिल नहीं है और जब पारा 47 से 50 डिग्री पहुंचता है तब चिल्लाते हैं पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ।