अश्वस्थामापुरी से जुड़ा हैं महाभारत कालीन का इतिहास
भृगु ऋषि की तपोस्थली व अश्वस्थामा की नगरी का भी पुराणों में मिलता है उल्लेख
फतेहपुर। उत्तर प्रदेश का फतेहपुर जनपद जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जो की गंगा और यमुना जैसी दो पवित्र नदियों के बीच बसा हुआ है और इसीलिए दोआबा की धरती के रूप में भी जाना जाता है इतना ही नहीं फतेहपुर जनपद के कई प्रमुख स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है जो कि जनपद वासियों की आस्था का प्रतीक माना जाता है। मालूम रहे की फतेहपुर जनपद के भिटौरा घाट भृगु ऋषि की तपोस्थली व असनी घाट ( पक्का घाट ) समेत बने मंदिर व कई गंगा घाटों का उल्लेख पुराणों में किया गया है। भृगु ऋषि की तपोस्थली (ओम घाट ) के इतिहास की जानकारी पूरी तरह से युवा पीढ़ी को नहीं है। आपको बताते चलें कि राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों का क्रिया कर्म करने के बाद उनकी भटकती हुई आत्माओ को शांति दिलाने के अलावा पूर्वजों को तारने हेतु उनकी राख को गंगा जी में प्रवाहित करने का प्रण ले लिया था जिसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या कर गंगा जी व शिवजी को प्रसन्न कर शिव जी की जटा के माध्यम से गंगा जी को धरती पर ले आए और उनका मार्गदर्शन करते हुए आगे बढ़ते गए और गंगा जी उनके पीछे बहती गई तभी गंगा जी ने देखा कि उनके मार्ग के बीच में भृगु ऋषि अपनी तपस्या में लीन हैं। भृगु ऋषि की तपस्या को भंग ना करते हुए गंगा जी ने उनके चरणों का अंगूठा स्पर्स कर उन्हें प्रणाम करते हुए अपना मार्ग बदल कर उत्तर दिशा की तरफ आगे बढ़ गईं। इसीलिए जनपद फतेहपुर के भिटौरा घाट को उत्तर वाहिनी गंगा के रूप में जाना जाता है भृगु ऋषि के द्वारा की गई तपस्या के कारण उनके तपोबल वाले स्थान पर सभी देवी देवताओं का वास है। कहा जाता है कि ओम घाट में जाकर गंगा जी में डुबकी लगा कर स्नान करने वाले भक्तों को पापों से मुक्ति मिलने के अलावा उन्हें सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है इतना ही नहीं ओम घाट में स्थित मंदिर के भीतर लगभग 6 फीट की शिवलिंग स्थापित है जहां लगभग दो दशकों से “ओम नमः शिवाय” के मित्रों का उच्चारण बिना रुके हि दिन और रात होता रहता है किंतु स्वामी विज्ञानानंद जी के द्वारा दो दशकों से किए जा रहे भरपूर प्रयासों के बावजूद ओम घाट को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित ना किया जा सका। इसी प्रकार जनपद के खागा नगर पंचायत से कुछ दूरी में मझिल गांव में स्थित शिव मंदिर के अलावा जनपद में मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित दक्षिण दिशा में महाभारत कालीन अश्वस्थामा की नगरी भी मावजुद है जो महाभारत कालीन में अश्वस्थामापुरी के नाम से जानी जाती थी वह अब असोथर नगर पंचायत के रूप में जानी जाती है। असोथर कस्बा में स्थित महाभारत कालीन अश्वस्थामा मंदिर में प्राचीनकाल की पांच पांडवों के अवशेष तथा अश्वस्थामा की मूर्ति भी मावजूद हैं जो महाभारत कालीन को दर्शाती हैं। मालूम रहे कि लंबे समय से इन ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने की मांग चल रही है। जनपद को एक पहचान देने वाली ऐतिहासिक धरोहर मिट्टी में मिलती नजर आ रही है जो की उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के अश्वस्थामा मंदिर को महाभारत कालीन के इतिहास से जोड़ती है। माना जाता है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने ब्रह्मास्त्र पाने के लिए यहां तपस्या की थी और इसके अलावा पांचों पांडव अज्ञातवास में यहीं टिके थे। जिसे कई दसक पूर्व अस्वस्थामा की नगरी के रूप में जाना जाता था किंतु जिसको कालांतर में असोथर के नाम से जाना जाता है और जो मुख्य पर्यटक स्थलों में से एक है। अवस्थामा की नगरी दिन ब दिन जनपद वासियों के बीच विख्यात होती गई और जनपद वासियों के लिए यह एक आस्था का केंद्र बन गया इतना ही नहीं उपरोक्त स्थान का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि जनपद को एक नई पहचान दिलाने वाले इस आस्था के केंद्र को गंभीरता से नहीं लिया गया जबकि जनपद की उपरोक्त ऐतिहासिक धरोहरें जनपद के लिए वरदान साबित हो सकती हैं और जनपद में टूरिज्म को बढ़ावा भी मिल सकता है। गौरतलब बात तो यह है कि यदि जनपद की जिला अधिकारी द्वारा शासन को पत्र भेज कर पुराणों में उल्लेख किए गए सभी उपरोक्त स्थानों को जो कि जनपद वासियों की आस्था का केंद्र हैं से पुनः अवगत कराया जाए तो पुरातत्व विभाग द्वारा उपरोक्त सभी स्थानों का परीक्षण कर शासन को रिपोर्ट प्रेषित की जा सके जिससे कि इन आस्था के केंद्रों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सके तथा नवयुवा पीढ़ी भी इन आस्था के केंद्रों से भली भांति अवगत हो सके। इसके अलावा फतेहपुर जनपद में भी टूरिज्म को बढ़ावा मिल सके।