फतेहपुर उर्दू चांद की तारीख के मुताबिक नवी दसवीं मोहर्रम पर मोहल्ला तकिया चांद सा से पीलू तले लाला बाजार से बाकरगंज मसवानी से निकल के कूल तालाब के रास्ते से अपने अपने मुकाम पर आ जाते हैं जो की उर्दू कैलेण्डर के मुताबिक मनाया जाता है मोहर्रम का जुलूस तकिया चांद स्थित दुलदुल की ताजिया बड़ा इमामबाड़ा से निकलकर लाला बाजार पीलू तले तारीख के मुताबिक 09 मोहर्रम को अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचता है।
आखिर मुस्लिमों के लिए क्यों खास है मोहर्रम की नव दस तारीख।
आज ही के दिन पानी रोका गया था इमाम हुसैन के कुनबे का।
फतेहपुर इमाम-ए-हुसैन किसी एक मजहब व सम्प्रदाय के नहीं थे। बल्कि वे संपूर्ण मानव जाति के थे। जुल्म ओ नाइंसाफी एवं असत्य के आगे सर न झुकाने वाले इमाम-ए-हुसैन 61 हिजरी 680 ई० ईराक स्थित कर्बला के मैदान में लड़ते हुए शहीद हुए थे। इमाम के उन मासूमों की याद में सात मुहर्रम को मेंहदी (ताजिया) रखी जाती है। कर्बला के मैदान में हुए दिल दहलाने वाले इस युद्ध में इमाम-ए-हुसैन ने अपने बहत्तर साथियों के साथ भूखे-प्यासे रहकर जंग की दसवीं मुहर्रम को यजीदियों ने शहीद कर दिया था। इमाम अपने छोटे लश्कर के बल पर सबसे शक्तिशाली क्रूर शासक यजीद व उसकी एक लाख फौज के छक्के छुड़ा दिया था। यजीद चाहता था कि कि इमाम उसे इस्लाम का खलीफा मान लें और उसके हाथ पर बैअ्त यानि (संधि) कर लें। लेकिन इमाम ने ऐसा न करने का प्रण कर लिया। 28 रज्जब सन् 61 हिजरी को इमाम अपने परिवार के साथ मदीने से चले, 05 माह तक सफर करने के बाद दो को कर्बला के मैदान में पहुंच शिविर लगाया। इसकी सूचना यजीद को हुई। उसने पहले बैअ्त का प्रस्ताव भेजा। जिसको अस्वीकार करने पर सात मुहर्रम से ही उन पर व उनके कुनबे पर पानी बंद कर दिया गया और नौ मुहर्रम की रात्रि में ही फौजों के साथ इमाम के काफिले पर हमला कर दिया गया। इस हमले का मोर्चा हजरत अब्बास ने रोका।
लोग अपने अपने मन्नत तो के साथ चांद दुनिया की ताजिया पर आकर मन्नत पूरी कर के चढ़ावा चढ़ाते हैं मन्नत पूरी होने पर तमाम जायरीन उनके आस्था ने मुबारक पर जाकर शिद्दत के साथ अपना नजराना पेश करते हैं रात 12:00 बजे से शहर की विभिन्न विभिन्न मुख्य मार्गों से होकर ताजिया निकल कर रास्ते में मिलाप होने के बाद अपने मुकाम पर पहुंच जाते हैं।
इमाम ने जालिमों से इबादत के लिए एक रात्रि का समय मांगा। दस मुहर्रम की सुबह यजीद के फौज की कहर से इमाम के एक-एक करके साथी शहीद हो रहे थे। 06 माह का मासूम अली असगर को हुरमला ने तीन फाल का तीर मारकर शहीद कर दिया, अली अकबर बेटे व भतीजा कासिम भाई हजरत अब्बास को नदी के किनारे काटकर शहीद कर दिया गया। आखिर में दोस्त मुस्लिम के शहादत के बाद शिविर में गये इमाम से महिलाओं ने अन्य लोगों के बारे में पूछा तो दु:खी होकर उनके शहादत की बात बताई। उसके बाद इमाम घोड़े पर सवार होकर जंग-ए-मैदान की ओर चले तो इमाम की चार वर्षीय पोती सकीना उनसे लिपट गई। जिसको समझाकर बहन जैनब के हवाले कर आगे बढ़े। कर्बला के मैदान में इमाम की वीरता देख यजीद की फौज पीछे भागने लगी।