बस्ती। फसलों के अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए पराली प्रबन्धन आवश्यक है। उक्त जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चन्द्र तिवारी ने मण्डल के जनपदों में कृषको को जागरूक करते हुए फसल अवशेष न जलाये जाने का सुझाव दिया है। उन्होने बताया कि फसल अवशेष जलाये जाने से मिट्टी जलवायु एवं मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है तथा पर्यावरण भी दूषित होता है। पराली जलाने से खेत के मिट्टी में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते है, जो मृदा की उर्वरता शक्ति बढ़ाने में सहयोगी होते हैं।
उन्होने बताया कि मृदा की उर्वरता बनाए रखने एवं पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने के लिए फसल अवशेष प्रबन्धन अतिआवश्यक है, जिस हेतु पराली गौशाला में भेजने, पराली को भूमि में सड़ाकर उर्वरा शक्ति बढ़ाने हेतु कृषि विभाग से 50 से 80 प्रतिशत तक अनुदान पर उपलब्ध कृषि यंत्र यथा- सुपर सीडर, स्ट्रा रीपर, मल्चर, पैड़ी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबुल एम.बी. प्लाऊ, स्ट्रा रेक व बेलर आदि यंत्रों के प्रयोग से पराली का मल्च के रूप में प्रयोग करने, पराली को सी.बी.जी. प्लान अथवा पैलेट यूनिट एवं औद्योगिक इकाईयों (कागज, गत्ता आदि की इकाई) को एफ.पी.ओ. एग्रीगेटर के माध्यम से भेजने आदि कार्यक्रम के द्वारा फसल अवशेष प्रबन्धन किया जा सकता है।
उन्होने बताया कि कम्बाइन हार्वेस्टर के साथ अनिवार्य रूप से सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट (एस.एम.एस.) का प्रयोग किया जाय। कम्बाइन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि फसल कटाई के साथ फसल अवशेष प्रबन्धन के यंत्रों का प्रयोग करे, अन्यथा कम्बाइन हार्वेस्टर को जब्त कर स्वामी के विरूद्ध नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जायेगी।
उन्होने बताया कि कृषि विभाग द्वारा पराली प्रबन्धन के यंत्रों का अनुदान पर वितरण तथा पूसा डी-कम्पोजर को निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है, जिसके लिए कृषक सम्बन्धित उप सम्भागीय कृषि प्रसार अधिकरी या राजकीय कृषि बीज भण्डार से सर्म्पक कर सकते है। पराली से देशी खाद तैयार करने तथा फसल अवशेष को पषुपालन विभाग एवं ग्राम पंचायत विभाग के सहयोग से गोशाला में दान करने के लिए प्रेरित किया गया है।
उन्होने बताया कि पराली जलाए जाने की घटना पाए जाने पर राजस्व विभाग द्वारा आर्थिक दण्ड लगाया जायेगा। दोषी कृषकों से वसूली यथा- 02 एकड से कम क्षेत्र के लिए रू0-2500 प्रति, 02 से 05 एकड़ के लिए रू0-5000 तथा 05 एकड से अधिक के लिए रू0-15000 तक पर्यावरण कम्पन्सेशन की वसूली एवं पुनरावृत्ति होने पर एफ.आई.आर आदि अन्य कार्यवाही की जायेगी।